तुझमे अपने को समा लिया है खुद में खुदा को रमा लिया है दिल को यूँ खामोश किया है रख सीने पर पत्थर लिया है लगी उम्मीदें तेरे आने की सरीह*-ए-रूह मैंने किया है नही था खेल दिन दो चार का एक उम्र तुम्हे याद किया है क्या हसी कहाँ की मुस्काने हर अंदाज तेरा ही दिया है देखना अब आ रहा है ‘भरत’ खुदी को तेरे हवाले किया है *सरीह = pure © भरत तिवारी सर्वाधिकार सुरक्षित | Tujh Me Apne Ko Sama Liya Hai Khud Me Khuda Ko Rama Liya Hai Dil Ko Yoon Khamosh Kiya Hai Rakh Seene Par Patthar Liya Hai Lagi Ummiden Tere Aane Ki Sareeh*-E-Ruh Main’Ne Kiya Hai Nahi Tha Khel Din Do Chaar Ka Ek Umr Tumhe Yaad Kiya Hai Kya Hasi Kahan Ki Muskaane Har Andaaz Tera Hi Diya Hai Dekhna Ab Aa Raha Hai ‘Bharat’ Khudi Ko Tere Hawaale Kiya Hai *Sareeh=pure © Bharat Tiwari All rights reserved |
30/12/10
तुझमे अपने को समा लिया है / Tujh Me Apne Ko Sama Liya Hai
26/12/10
नववर्ष तय्यारी-कुछ बिखरे चित्र ... रफत आलम
नए साल के स्वागत की तय्यारी हो रही है.सर्दी बहुत है.“मिंक”का कोट अच्छा लगेगा.जिंदा जानवर की खाल उतार कर बना.नरम नरम ,गर्म गर्म.सीप का दिल चीर कर बना मोतियों का हार.क्या खूब सजेगा. क्या फ़िक्र जो पास रूपया नहीं है.“एस्कोर्ट” सर्विस करके ले आयंगे.दो -चार को खुश ही तो करना है. परफयूम “पायजन” की खुशबु.भीनी भीनी अच्छी लगती .खरगोश की आँखों में डालकर.परखी हुई है.टेबल के लिए “कवियर” भी चाहिये.चालीस लाख मछली के अंडेसिर्फ चार की डिश के लिए.आतिशबाजी –पटाखे भी लेने है.माहोल के ज़हर से अभी कोन मर रहा है.कानों की हिफाज़त क्या करना.पड़ोस की परेशानी से केसा डरना.जश्न में संगीत तो शोरभरा ही चाहिएनए साल का स्वागत करना हैपसीने की नदी के किनारेधूलधुलसित अधनंगे साँस लेते कंकाल. घुटनों के बीच सर छुपाये हुए.सर्दी से बचाव में अधभरे पेट पर झुक गए हैं.स्वेटर –रजाई के तस्सवुर में. रद्दी-टायरों के साथ जल कर रात मर जायेगी.दूर जगमगाती रोशनियों की मरीचिका.लाखों जागते सपनों की जिंदा कब्रगाह है. नए साल का स्वागत करके आप. खुमार में गाफिल पड़े होंगे.ये मुफलिस उठ खड़े होंगे.प्याज –रोटी के जुगाड में.शाहराहों पर धुएं की तरह खो जायेगे.गुजर जायेगी एक जनवरी ग्यारह भी.
25/12/10
~ तुम अजनबी ~ ~ Tum Ajnabee ~
17/12/10
कोशिश
9/12/10
कहाँ से तेरे ये मोती आते
यहाँ के सारे अँधेरे जाते …
तूने भरा होगा अपनी बाँहों में
यों नहीं ख्वाब महकते आते …
अब मेरी पलक नहीं झुकती
नाम हवाओं में जो लिखे जाते …
इश्क में खबर नहीं थी हमको
ये चाँद सिर्फ ईद में नज़र आते...
कुछ इतना ताज़ा वो तेरा अहसास
‘भरत’ के घाव खुद-ब-खुद भर जाते…
भरत ९/१२/२०१० नई दिल्ली
एक पत्ता / Ek Pattha
ऐसे घूम जाते हो
मैं
बस देखता रह गया
एक पत्ते सा दिल
तुम्हारे पीछे
साथ साथ
दूर तक आया
अच्छा किया
तुमने
उसे सम्हाल लिया
और
रख दिया
किताब में
पन्नों के बीच
…………….भरत ९/१२/२०१० नई दिल्ली
Tum
Aise Ghoom Jaate Ho
Main
Bas Dekhta Rah Gaya
Ek Patte Sa Dil
Tumhaare Peechhe
Saath Saath
Door Tak Aaya
Achhcha Kiya
Tumne
Use Samhaal Liya
Aur
Rakh Diya
Kitab Men
Pannon Ke Beech
…………….Bharat Tiwari 9/12/2010 New Delhi
8/12/10
मेरा किनारा
~~~
तुम्हे मैं अँधेरे में
देख लेता हूँ
वहाँ भी
जहाँ खुद को भी नहीं
अहसास तुम्हारा
अन्दर समा गया है
आँखें तुम्हारी बोलती हैं
बंद हों तो भी
तुम...
तुम मेरा किनारा हो
मेरा खोया हुआ मैं
भरत तिवारी ८/१२/२०१० नई दिल्ली
6/12/10
Koocha-e-Yaar / कुचा-ए-यार
3/12/10
Chhalia / छलिया
22/11/10
Kahan Jaaoon ... कहाँ जाऊं ... কহাঁ জাঊং ...
कहाँ जाऊं ...
कहाँ से बादल का टुकड़ा आया
कहाँ से दिल को सुकून आया...
दिवार घर की बंधी थी पहले
खुली तो नजर आसमां आया ...
अभी तो हूँ मैं तेरे हवाले
तुझे ले जाने है अब वो आया ...
ये मुस्कराहट भरा सवेरा
उदास चेहरे पे तुझ से आया...
भरत की है तू बिटिया रानी
कहाँ वो जाये समझ ना आया ...
भरत २२/११/२०१० १५:२८ कल्याणी
কহাঁ জাঊং ...
কহাঁ সে বাদল কা টুকডা আযা
কহাঁ সে দিল কো সুকূন আযা...
দিবার ঘর কী বংধী থী পহলে
খুলী তো নজর আসমাং আযা ...
অভী তো হূঁ মৈং তেরে হবালে
তুঝে লে জানে হৈ অব বো আযা ...
যে মুস্করাহট ভরা সবেরা
উদাস চেহরে পে তুঝ সে আযা...
ভরত কী হৈ তূ বিটিযা রানী
কহাঁ বো জাযে সমঝ না আযা ...
ভরত ২২/১১/২০১০ ১৫:২৮ কল্যাণী
Kahan Jaaoon ...
Kahan Se Baadal Ka Tukda Aaya
Kahan Se Dil Ko Sukoon Aaya...
Diwar Ghar Ki Bandhi Thi Pahle
Khuli To Nazar Aasmaan Aaya ...
Abhi To Hoon Main Tere Hawaale
Tujhe Le Jaane Hai Ab Wo Aaya ...
Ye Muskurahat Bhara Sawera
Udaas Chehare Pe Tujh Se Aaya...
Bharat Ki Hai Tuu Bitiya Rani
Kahan Wo Jaaye Samajh Na Aaya ...
Bharat 22/10/2010 15:28 Kalyani
17/11/10
dhadkano ke thamne ki gunjaaish धडकनों के थमने की गुंजाइश
तुझ से दूर होने की अजमाइश...
बेतरतीब कमरों की उदास रातें
अजीब इन सिलवटों की फरमाइश ...
गर्म गली में बच्चों का शोरगुल
ये उम्र उस खुदा की नियाइश * blessing
अँधेरी है शब के चाँद गायब है
है धडकनों के थमने की गुंजाइश...
सुबह आवाज़ दे रही है फिर ‘भरत’
लगा दो दिल-ए-मासूम की नुमाइश ...
© सर्वाधिकारसुरक्षित भरत तिवारी
nami-e-sard-e-shaam ki garmaaish
tujh se door hone ki ajmaaish...
betarteeb kamron ki udaas raaten
ajeeb inn silawaton ki farmaish ..
garm gali men bachchon ka shorgul
ye umr uss khuda ki niyaish * blessing
andheri hai shab ke chaand gaayab hai
hai dhadkano ke thamne ki gunjaaish...
subah aawaaz de rahi hai fir ‘bharat’
laga do dil-e-masoom ki nummaaish ...
© Bharat Tiwari all rights reserved
7/11/10
Maa ! Fir Tyohaar / माँ ! फिर त्यौहार
और तुम्हारी याद
कहाँ तो
सामने होती थी
कहाँ अब
तस्वीर बन गयी
कहीं से तो रोको
किसी बात पे तो डांट दो
थोड़ा दुलार
बस बहुत थोड़ा सा
एक बार बस
पुकार दो
बोल दो
कि कहाँ थे
कह दो
कि बड़े हो गए हो अब
कहाँ हो पाया
बड़ा
वैसा ही हूँ
जैसा था
वैसे ही ढूँढता हूँ
अचार की महक
स्कूल से वापस आ के
रोज़ ब रोज़
© भरत तिवारी सर्वाधिकार सुरक्षित
Maa ! Fir Tyohaar
Aur Tumhari Yaad
Kahan To
Saamane Hoti Thi
Kahan Ab
Tasveer Ban Gayi
Kahin Se To Roko
Kisi Baat Pe To Daant Do
Thoda Dular
Bas Bahut Thoda Sa
Ek Baar Bas
Pukar Do
Bol Do
Ki Kahan The
Kah Do
Ki Bade Ho Ge Ho Ab
Kahan Ho Paaya
Bada
Waisa Hi Hoon
Jaisa Tha
Waise Hi Dhoondhata Hoon
Achaar Ki Mahak
School Se Wapas Aa Ke
Roz B Roz
© Bharat Tiwari All rights reserved
31/10/10
21/10/10
मेरे साथ कहाँ था
जहाँ मैं
उदास हुआ था
तू
साथ कहाँ था …
माला की
मोतियों में
तेरा नाम
क्यों
लिखा था…
घंटियाँ
खनकी मंदिर की
तेरा नाम
गूँजता था …
जमीं में
उगी है
मिट्टी
सोंधा सा
मैं हुआ था …
एक
नया सा
चाँद देखा
या
नकाब वो हटा था …
कहीं
कुछ
दब सा रहा है
कही
तू जुदा
हुआ था …
भरत ००:०० २२/१०/२०१०
tumhaare sang hoon main / तुम्हारे संग हूँ मैं
बिटिया
तुम्हे हँसने के लिये बनाया है सृष्टि ने
उदासी से दूर
दुखों से परे
प्यार की परछाईं तले
बिटिया
भेड़ियों की प्रजाति को खत्म करना
मेरा ही काम है
बिटिया
कोई अकेला नहीं सब अकेले होते हैं
ब्रह्मांड सब में है
ब्रह्मांड में सब
बिटिया
तुम निर्भय हो के चलो
सृष्टि में
तुम्हारे संग हूँ मैं एक पिता.
bitiya
tumhe hansne ke liye banaya hai srishti ne
udaasi se door
dukhon se pare
pyar ki parachhain tale
bitiya
bhediyon ki prajati ko khatm karana
mera hi kaam hai
bitiya
koi akela nahin sab akele hote hain
brahmaand sab men hai
brahmaand men sab
bitiya
tum nirbhaya ho ke chalo
srishti men
tumhaare sang hoon main ek pita.
17/10/10
मनाओ विजयदशमी
माँ ने महिषासुर हरा
श्रीराम ने रावण वधा
रावण मृत्युलोक में
मनाओ विजयदशमी
16/10/10
Suun Tu Meri Ruuh Men Basa Jata Hai सुन तू मेरी रूह में बसा जाता है
सुन तू मेरी रूह में बसा जाता है तकरार तेरी ना हो तो क्या हो सौंपी तेरे हाँथों में हर डोर अपनी तू है तो मंजिल नज़र के सामने तू मुस्कुरा दे मेरे एक अशार पे भरत के सारे हर्फ़ तुझ पे कुर्बान भरत ००:११ १६/१०/२०१० नई दिल्ली | Suun Tu Meri Ruuh Men Basa Jata Hai Takraar Teri Na Ho To Kya Ho Saunpii Tere Haanthon Men Har Dor Apni Tu Hai To Manzil Nazar Ke Saamne Tu Muskura De Mere Ek Ashaar Pe Bharat Ke Saare Harf Tujh Pe Kurbaan Bharat 00:11 16/10/2010 New Delhi |
15/10/10
Izhaar-E-Ishq Karne Ki Soch
इज़हार-ए-इश्क करने की सोच इज़हार-ए-इश्क करने की सोच
| Izhaar-E-Ishq Karne Ki Soch Izhaar-E-Ishq Karne Ki Soch
|
13/10/10
याद मिटा दूँगा yaad mita doonga
Vincent Van Gogh - Olive Trees With Yellow Sky And Sun
बीती रात इक ख्वाब टूटा था सहमा हूँ शाम होने को है
घर को दस्तक ना दे नाम दरवाजे से हटा दो
तस्वीरें जलानी है हर तरफ़ पुर्ज़े पड़े हैं चेहरे हों या हर्फ़ धुंध छानी ही थी
भूलने को उम्र पड़ी है याद मिटा दूँगा एक दिन
ख्वाबों में बसा नहीं करता सामने आइना रखा है मेरे तोड़ के अपनी तस्वीर तू खुद से कहाँ भागेगा परछाईं जाती नहीं अमावस आती नहीं पूरे चाँद की रात हमेशा चांदनी देती नहीं
जो डूबेगा सूरज पहाड़ियों के दरख्त के पीछे मकान तुझे दिख जायेगा घर नज़र ना आयेगा तेरा घर नज़र ना आयेगा | beeti raat ik khwab toota tha sahama hoon shaam hone ko hai
ghar ko dastak na de naam darawaaje se hata do
tasweeren jalaani hain har taraf purze pade hain chehre hon ya harf dhundh chhani hi thi
bhoolne ko umr padi hai yaad mita doonga ek din
khwaabon men basa nahin karta saamane aaina rakha hai mere tod ke apani tasweer tuu khud se kahan bhagega parachhain jaati nahin amaawas aati nahin poore chaand ki rat hamesha chaandni deti nahin
jo doobega sooraj pahadiyon ke darakht ke peechhe makaan tujhe dikh jayega ghar nazar na aayega tera ghar nazar na aayega |
11/10/10
Jo Uss Khuda Ne Tay Kiya Hoga / जो उस खुदा ने तय किया होगा
Yellow Red Blue, a painting by Wassily Kandinsky
जो उस खुदा ने तय किया होगा तेरी किस्मत में बस वही होगा
दिल की पुकार जाती है वहाँ तक सवाल तो कर जवाब सही होगा...
तू उसकी रहमत पे भरम ना रख उसकी झोली में तेरा ख्वाब ही होगा ...
कब आ जाये तेरे दर, क्या मालुम रूह को साफ़ रख घर वही होगा ...
तेरी मंज़िल कभी मुश्किल नहीं राह में वो खुद तेरा हमराही होगा
लखीर-ए-पेशानी किस्मत-ए-भरत परेशान होने से कुछ नहीं होगा
भरत तिवारी ११/१०/२०१० नई दिल्ली | Jo Uss Khuda Ne Tay Kiya Hoga Teri Kismat Men Bas Wahi Hoga
Dil Ki Pukar Jaati Hai Wahan Tak Sawal Toh Kar Jawab Sahi Hoga...
Too Uss’ki Rehmat Pe Bhram Na Rakh Usski Jholi Men Tera Khwab Hi Hoga ...
Kab Aa Jaaye Tere Dar, Kya Maalum Ruh Ko Saaf Rakh Ghar Wahi Hoga ...
Teri Manzil Kabhi Mushkil Nahin Raah Men Wo Khud Tera Hamrahi Hoga
Lakheer-E-Peshani Kismat-E-Bharat Pareshaan Hone Se Kuch Nahin hoga
Bharat Tiwari 11/10/2010 New Delhi |
10/10/10
महफ़िल को शमा दिखाओ तो क्या Mehafil Ko Shama Dikhao To Kya
महफ़िल को शमा दिखाओ तो क्या अब कोई कमाल दिखाओ तो क्या तूफ़ान था, गया साथ हवाओं के उसे हुस्न के जलवे दिखाओ तो क्या तेरे होने से आँगन आँगन था धूल अब लाख हटाओ तो क्या मेरे पास चंद अशार है तेरे साथ रंग-ओ-खुमार है दौलत पे जो मर जाओ तो क्या
कब कदर की जज़्बे की तूने नज़रों को तेरी फुरसत थी कहाँ रूह जो मर के भी है प्यासी अब कब्र पे दिये जलाओ तो क्या हाल-ए-दिल भरत बयान करता है समझ के भी न समझ पाओ तो क्या | Mehafil Ko Shama Dikhao To Kya Ab Koi Kamaal Dikhao To Kya
Toofaan Tha, Gaya Saath Hawaaon Ke Usse Husn Ke Jalave Dikhao To Kya
Tere Hone Se Aangan Aangan Tha Dhool Ab Lakh Hatao To Kya
Mere Paas Chand Ashar Hai Tere Saath Rang-O-Khumar Hai Daulat Pe Jo Mar Jaao To Kya
Kab Kadar Ki Jazabe Ki Tuune Nazaron Ko Teri Furasat Thi Kahan Ruuh Jo Mar Ke Bhi Pyasi Hai Ab Kabr Pe Diye Jalao To Kya
Haal-E-Dil ‘Bharat’ Bayan Karta Hai Samajh Ke Bhi Na Samajh Paao To Kya |
………………………………Bharat Tiwari / New Delhi 10/10/10
9/10/10
हमें अरसे से इंतेज़ार-ए-दीदार / Hamen arse se inteazaar-e-deedar
हमें अरसे से इंतेज़ार-ए-दीदार
तू देख तो अर्जी मेरी एक बार
तू जाने क्या है फ़िदा हूँ तुझ पे
उतरा है मेरी रूह में हर एक बार
कभी आँखों के समंदर में उतारो
दिखा दो इश्क की गहराई एक बार
मेरी रंगत तेरे नूर की बदौलत है
तू हो कर रह मुझमे बस एक बार
तुझे समझना है मक्सद-ए-उम्र मेरी
कम से कम पलक तो उठा एक बार
मेरे नाम की लखीर है तेरी हंथेली पे
दिखेगा भरत तू जोड़ उन्हें एक बार
Hamen arse se inteazaar-e-deedar
tu dekh to arzi meri ek baar
tu jaane kya hai fida hoon tujh pe
utra hai meri ruuh main har ek baar
kabhi aankhon ke samandar me utaro
dikha do ishq ki gahrai hamen bhi ek baar
meri rangat tere noor ki badaulat hai
tu ho kar rah mujhmen bas ek baar
tujhe samajhna hai maqsad-e-umr
kam se kam palak to utha ek baar
mere naam ki lakheer hai teri hatheli pe
dikhega bharat to jod unhe ek baar
bharat 6:21 9/10/2010 new delhi
8/10/10
कारक
असल माँ
अंदर होती है
खैर
आसन नहीं है उसको देख पाना
वैसे भी
कोशिश ही कब करी
माँ लाल नहीं होती
माँ के लाल होते हैं
और कोई रंग माँ का
रंग तो माँ का जी नहीं हो सकता
पानी होती है
अंदर तक हमारे
जब आये थे तो भी
जब जाओगे तो भी
माँ रहेगी हमेशा
वो किसी के होने से नहीं है
उसके होने से ही...
ये सब जो घूम रहा है ,
वो घूम रहा है
कारक ...
उसके होने से ही था, है
और रहेगा अनंतकाल तक
ना जब कुछ था तो माँ थी
कुछ ना होगा तो भी होगी...
भरत २१:०२ ७/१०/२०१०
3/10/10
हम तो तब ही रंग गए थे / Hum to tab hi rang gaye the
हम तो तब ही रंग गए थे
जब मैं से हम हुए थे...
इश्क का ख्वाब देखा
फिर कहाँ हम हुए थे ...
प्यास से मोहब्बत
बे-अब जो हम हुए थे ...
वो गरीब शहर अजीब था
जहाँ दुनिया के हम हुए थे ...
आँख लगती नहीं ‘भरत’ की
किस नज़र से जुदा हम हुए थे...
*बे-अब = बिना पानी के
भरत तिवारी `१६:४२ ०३/१०/२०१० नई दिल्ली
Hum to tab hi rang gaye the
Jab main se hum huey the...
Ishq ka khwab dekha
Fir kahan hum huey the ...
Pyas sey mohabbat
Be-ab jo hum huey the ...
Wo gareeb shahar ajeeb tha
Jahan duniya ke hum huey the ...
Aankh lagti nahin ‘bharat’ ki
Kis nazar se juda hum huey the...
*Be-ab = Without water
Bharat Tiwari 16:42 03/10/2010 New Delhi
1/10/10
अब ना ज्यादा सोंचो / Ab na jyada soncho
29/9/10
aisi raaten kyon banate hain aap / ऐसी रातें क्यों बनाते हैं आप
दहशत दिलों की बढ़ाते हैं आप ...
रंग खून का जुदा क्यों न किया ?
एक सा बना के लड़ाते हैं आप ...
अब के यों चुपचाप ना देखना
मैं देखूँगा क्या कमाल दिखाते हैं आप ...
क्यों बेहूदों को ताकत दे डाली
इंसानों को कैसे भूल जाते हैं आप ...
ओ सुबह सुनहरी बनाने वाले
क्यों इसे लाल बनाते हैं आप...
दो वक्त की रोटी तो मिलती नहीं
जलते चूल्हों को बुझाते हैं आप ...
‘भरत’ ना देखेगा नकली दुनिया
असली चेहरा क्यों छुपाते हैं आप ...
भरत तिवारी
२२:३८
२९/०९/२०१०
नई दिल्ली
aisi raaten kyon banate hain aap
dahashat dilon ki badhaate hain aap ...
rang khoon ka juda kyon na kiya ?
ek sa bana ke ladaate hain aap ...
ab ke yon chup chaap na dekhna
main dekhoonga kya kamaal dikhate hain aap ...
kyon behoodon ko taakat de dali
insanon ko kaise bhool jaate hain aap ...
o subah sunahari banane waale
kyon isey lal banate hain aap...
do waqt ki roti toh milti nahin
jalte choolhon ko bujhate hain aap ...
‘bharat’ na dekhega nakli duniya
asali chehra kyon chhupaate hain aap ...
Bharat Tiwari
22:38
29/09/2010
New Delhi
http://www.facebook.com/note.php?note_id=442005466362
28/9/10
सम्पूर्णता के लिये…
परिधि थी अब क्यों तोड़ी ये मसला है वैसे देखा जाये तो कहाँ कोई मानता है आज कल आज कल परिधि को लांघना ही फैशन तोडें क्यों चित भी और पट भी तोड़ने में दोनों मिलते नहीं लांघो और सहूलियत देखी तो वापस खामियाज़ा भुगतने के समय खामियाज़ा माँग लो उल्टी गंगा ज्यादा नहीं बह सकती बह ही नहीं सकती वैसे दुनिया भी बीसियों हैं और सब की अपनी अपनी नियमावली सब अपने में बड़ी बड़ी इधर वाला उधर जाने को आतुर लांघा तो इधर से गया उधर का पता नहीं ऊँची वाली दुनिया नीची नीची वाली ऊँची उसके लिये वो इसके लिये ये बांधो थोड़ा सा संकीर्णता के लिये नहीं सम्पूर्णता के लिये अगली पीढ़ी का सोंच लो अपना ही सोंच लो कम से कम
भरत तिवारी ००:५५ २८/०९/२०१० नयी दिल्ली | gallery.dralzheimer.stylesyndication.de |
26/9/10
थोड़ा धीरे बड़ी हो…Thōdā dhīrē badī hō...
jeene ki wajah talash raha hoon main / जीने की वज़ह तलाश रहा हूँ मैं
.
जीने की वज़ह तलाश रहा हूँ मैं
तेरी आँखों में तभी तो देख रहा हूँ मैं
एक सियाह रात सा दिल
चिराग तुझ से कर रहा हूँ मैं
तमन्ना को लगे हैं पंख नये
देख, छत उसकी जा रहा हूँ मैं
तूफानों से दोस्ती है बहुत पुरानी
जुल्फ-ए-यार के साये में रहा हूँ मैं
‘भरत ‘ सुबहों के वो उजाले गए कहाँ
बाम का सूना नशेमन देख रहा हूँ मैं
भरत तिवारी
jeene ki wajah talash raha hoon main
teri aankhon men tabhi to dekh raha hoon main
ek siyah raat sa dil
chiraag tujh se kar raha hoon main
tamanna ko lage hain pankh naye
dekh, chhat usski ja raha hoon main
toofanon se dosti hai bahut purani
zulf-e-yaar ke saaye men raha hoon main
‘bharat ‘ subahon ke wo ujaale gaye kahan
baam ka soona nasheman dekh raha hoon main
with love Bharat Tiwari…
18/9/10
कापथ की आग
17/9/10
सफ़र शुरू
बड़े दिनों से टाल रहा था
शायद...
जब से होश सम्हाला
उसने कोशिश की , बहुत कोशिश की
फितरत
संगत
काहिलपन
या शायद हिम्मत की कमी ...
यही लगता है
इतना कुछ था उसके पास
ज्ञान की सारी जानकारी
हिम्मत की कमी...
आड़े आती रही
मान ही लिया ना कि कमी थी ...
कभी दो – चार बातें बताई उसने
तो
डर गए , सच हमेशा नहीं जीत पाता
वही... हिम्मत की कमी
बैठी रही जमा के आसन लेकिन
दो दो चार चार करके इकट्ठा
और अब जब आसन खुला
सब भेद खुलने शुरू
ज्ञान का गोमुख दिखा
एक पतली धार है अभी तो
हिम्मत भी खुली है कुछ
अब सागर को होना है
सफ़र शुरू ...
....भरत १७/०९/२०१० – ००:४८
16/9/10
है !
क्या खोजना उसे ?
अंतर्मन में दिख जाता है
नशे की दुनिया में ना तलाशो
मिट्टी की सोने की प्रतिमा में ?
है ! धुल के उस कड़ में..
दिखता है नाचता हुआ
अँधेरे कमरे में भी
झरोके से आती धूप की रेखा में
है ! उसकी आँख में
जो कुछ नहीं माँगती
फिर भी तुम मिला नहीं पाते.
बंद आँखों के अँधेरे में
जरा गहरे जाओ
अंत में आता उजाला...है !
उँगलियाँ थिरका रहा है
दिमाग ?
तुम चला रहे हो ?
मत जाओ वापस नशे में
वहाँ वो नहीं मिलता.
सामने देखो
है ?
है ना …..
भरत तिवारी १६/०९/२०१० – ८:०१
नई दिल्ली
14/9/10
उसे हिन्दी पर ही मोह आता है … #हिन्दी_में_बोलो #हिंदी_दिवस
आज
उधार उतारने जाता हूँ
हिन्दी में
बात बताता हूँ
देखूँ तो
दूंढूं उन्हें
वो पत्र
दीदी के लिखे
हिन्दी के शब्दों में घुली
ममता से डूबी वो पंक्ति
“आशीर्वाद मेरा घर में देना “
आशीर्वाद वो लेने जाता हूँ …
प्यार वो मिलता नहीं
मिठास वो आती नहीं
कुछ समझ भी आती नहीं
असत्य है ये बात
कि भाषा से का प्रभाव नहीं पड़ता
जो सम्मान प्रणाम से होता है
वो रिगार्ड्स में दिखता नहीं
माँ जी गयी जब छोड़ कर
साथ गया समाचार पत्र
अब कहीं अगर दिख जाये तो
उसमे विज्ञापन चिल्लाता है
“.. तीस दिन में अंग्रेज़ी सीखें"
खूब मजाक उड़ाता है
गाने गाओ हिन्दी केऔर नाच करो अंग्रेज़ी के
फिल्मे देखो हिन्दी की
और बात करो हालीवुड की…
क्यों दोगलापन ये आता है ?
यहाँ कौन किसे झुठलाता है ?
ये कहाँ सिखाया जाता है ?
अपने में झाँक के देखा तो
दोषी अंदर मुस्काता है
हिन्दी सुन परदेश में वो
मगन क्यों हो जाता है
अपने दिल से पूछो तो तुम
उसे हिन्दी पर मोह आता है
उसे हिन्दी पर मोह आता है
भरत तिवारी , नई दिल्ली , १४/०९/२०१०
10/9/10
एल्बम गाँव से पुराना आया / Album gaanv se purana aaya
5/9/10
The Mall
He could see that they were not wearing the same kind of attire that he was wearing.His was ironed by mom, a shirt with crease intact neatly tugged in his pants.
Made him think, how come they are wearing these torn pants and still getting all the attention.
The mall was full of these people wearing costumes that look so unpleasant to him but there were a few who were sporting the dresses similar to his, they are so like me Rajiv thought.
Next moment his mind swing back and said, “Why are they so silent and sitting as if they are afraid.” He could not reply to his brain. He thought am I afraid too? Cause he too was having some strange feeling. Let’s go home he thought.
On his way back he was thinking these places are for those people not for him and he wondered how they can wear those dresses.
Unknowingly he touched his hair and felt relaxed they were neatly combed not like they had, he was now realising they had some difficult hair style too.
“I am not going to go there again”, he uttered, and “I can't have uncombed hair like them” Rajiv’s was walking fast now enjoying his own whistling.
He could feel that he is no longer afraid.
Bharat Tiwari
5/9/2010
New Delhi
image taken from www.aksesbisnis.com
4/9/10
असल चेहरा / Asal Chehra
क्यों बता तुझे ये रहीम-ओ-राम कहते हैं ?करके टुकड़े तेरे, देख मज़हब नाम कहते हैं
तू जिस दुनिया में गुम जी रहा है गुरूर में... तुझे मालूम नहीं इसी को दोज़ख कहते हैं ...
जिसकी हस्ती पे भी ऊँगली उठा रहा है तू घर उसी का है ये, कागज़ तेरा कहते हैं
बाहर तो निकल ख्वाबों की उस दुनिया से..तुझे सब में वो दिखेगा जिसे खुदा कहते है...
आईने तोड़ के जरा खुद में झांकेगा कभी ?...जो असल चेहरा है उसको ही रूह कहते हैं...
रब है मिट्टी, रब है सोना, रब है तेरा होना ...जो बना दे मिट्टी को सोना उसे रब कहते है bharat 24/8/2010
2/9/10
गुनाहों की तलाश
निकला हूँ गुनाहों,
मैं आज तेरी तलाश में …
तमाम पत्थर भी आये है,
मेरी तलाश में …
जिसे कभी कहीं,
देखा ना सुना आज तक…
खबर है आज-कल,
वो हैं मेरी तलाश में…
….
भरत २/९/२०१० १५:००
Nikla hoo’n gunaho’n,
main aaj teri talaash mai’n…
tamam pathar bhi aaye hain,
meri talaash mein
jise kabhi kahin,
dekha na suna aaj tak…
khabar hai aaj-kal
wo hain meri talash mai’n
…
bharat tiwari 2/9/2010 15:00
कृष्ण कौन हैं / Krishna Kaun Hai'n / Who is Krishna
1/9/10
har shakhs ko maaf kare jaa raha hoon...
ke jisne bhi mera dil dukhaya ho...
31/8/10
चाय भी ठंडी हो गयी
उसको शायद पैसों की उतनी चिन्ता इस लिए नहीं होती होगी क्योंकी सारी तो हम कर लेते हैं , सोंचती होगी जरूर क्योंकि जब वो मेरे कमरे में सफाई करने आती है तो कभी - कभी , मेरा मूड देख के कहती है , "अरे भईया आप आराम भी कर लिया करो कभी , हर समय इस लैइपताप में का बनाते रहते हो ? " और कभी जब देखती है की चाय वैसी ही रखी है तो "... देखिये चाय भी ठंडी हो गयी ... हाँ नहीं तो "
इस से ज्यादा नही कह पाती , के कहीं मैं गुस्सा ना हो जाऊं या फिर शायद नौकरी ना चली जाये... उसको भी शायद पैसों की चिन्ता हो जाती होगी
भरत
३१/०८/२०१०
१०:२५
30/8/10
Rooh ke Gahne रूह के गहने
तुम्हें मालूम नहीं क्या काम किया है तुमने
कर दिया खुद को जो है उसके हवाले तुमने
अब भला क्यों थाम के बैठूँ दिल को अपने
सौंपा है उसको ही पहनाया ये चोला जिसने
जाओ बेफिक्र हो जहाँ भी तुझको अब है जाना
उसकी चाहत है जो पहरा उसके क्या कहने..
ज़िंदगी अब खुद-ब-खुद बा मायने भी होगी
अब उसके करम के ज़र्रे हैं ,तेरी रूह के गहने
तुम उसको इश्क कहो या कहो खुदा अपना
लिखना माथे पे जो था, लिख दिया है उसने
बात बे-साज़ की और लकीरें तेरी पेशानी पर
बता तुझ जैसे भरत उसके आशिक़ कितने ?
…भरत तिवारी / नई दिल्ली / ३०/०८/२०१०
tumhen mālūm nahin kya kaam kiya hai tum’ne
kar diya ḵẖud ko jo hai us’ke ḥawāle tum’ne
ab bhala kyon thām ke baith’oon dil ko ap’ne
saunpa hai us’ko hi pah’naya ye chola jis’ne
jaao be-fika ho jahan bhi tujhako ab hai jana
us’ki cha’hat hai jo pah’ra us’ke kya kah’ne
zindagi ab khud-b-khud ba maay’ne bhi hogi
ab us’ke karam ke zarre hain ,teri ruuh ke gah’ne
tum us’ko ishq kaho ya kaho khuda ap’na
likh’na maa’the pe jo tha, likh diya hai us’ne
baat be-saaz ki aur lakeer’en teri pesha’ni par
bata tujh jaise bharat us’ke aashiq kit’ne ?
… bharat tiwari / new delhi / 30/08/2010