क्या खोजना उसे ?
अंतर्मन में दिख जाता है
नशे की दुनिया में ना तलाशो
मिट्टी की सोने की प्रतिमा में ?
है ! धुल के उस कड़ में..
दिखता है नाचता हुआ
अँधेरे कमरे में भी
झरोके से आती धूप की रेखा में
है ! उसकी आँख में
जो कुछ नहीं माँगती
फिर भी तुम मिला नहीं पाते.
बंद आँखों के अँधेरे में
जरा गहरे जाओ
अंत में आता उजाला...है !
उँगलियाँ थिरका रहा है
दिमाग ?
तुम चला रहे हो ?
मत जाओ वापस नशे में
वहाँ वो नहीं मिलता.
सामने देखो
है ?
है ना …..
भरत तिवारी १६/०९/२०१० – ८:०१
नई दिल्ली
बंद आँखों के अँधेरे में
जवाब देंहटाएंजरा गहरे जाओ
अंत में आता उजाला...है वाह भारत भाई .... गजब ढहा दी भाई जी ,,,कभी कभी आप इतना घहरा उतार देते हो ..की सोच ही अलग हो जा या करती है अति सुन्दर ..सुन्दर