31/12/12

तुमको पता होगा tumko pata hoga

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सुनो तुमको पता होगा
बताओगे
जब हम पहले-पहले मिले थे
तब की जो तस्वीरें हैं
उन सब में
तुम अब भी उतने ही खूब दिखते हो
और मैं
बेवकूफ
दुबला
पतला
मरियल
बेरोजगार
अपने को उन तस्वीरों में देख
समझ नहीं पाता
आखिर तुमने तब ऐसा क्या देखा था मुझमे
जो ...

जो मुझे नहीं दिखता
हाँ ?


तुमको पता होगा
- शजर
tumko pata hoga
- shajar
suno tumko pata hoga
bataoge
jab ham pahle-pahle mile the
tab ki jo tasveereN haiN
un sab me
tum ab bhi utne hi khoob dikhte ho
aur mai
bevkoof
dubla
patla
mariyal
berojgaar
apne ko un tasveeroN me dekh
samajh nahi pata
aakhir tumne tab aisa kya dekha tha mujh me
jo …

jo mujhe nahi dikhta
haan ?



24/12/12

चली देवी

2 टिप्‍पणियां:

बर्बरता निर्लज्ज टूटी
प्रणय पावन रक्त रंजित
दहला यम
पाँव उठे , पाँव थमे
पाँव उठे , पाँव थमे
धरा करुण रुधन
मानव मौन
पाँव उठे
चलो देवी
पाँव उठे
चली देवी

14/12/12

कविता - सफ़ेद रौशनी की ठंडी लपट

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दिमाग की नसें पिघल 
लावे का गर्म घोल बन जाती हैं
सारे ख्याल
पिछले-अगले
बुदबुदा कर
छोटे बुलबुले बन
फूटने से ज़रा सा पहले
सतरंगी हो जाते हैं
गोल बुलबले में
आखिरी बार उतरता है
माजी का मंज़र
और उबाल खाते घोल में खो जाता हैं

फिर वो बारीक़ अक्षुण हिस्सा फूलता है
जो प्रणय के पहले अहसास का है
बढ़ता ही चला जाता है
लावे की आग धीमी कर
उसे समेट देता है
फिर सब कुछ उसमें ही
एक-एक कर समता जाता है
आँखें पहली और आखिरी बार
बुलबुले के अंदर से
प्रणय का रंग देखने को खुलती हैं
और बंद हो जाती हैं

सफ़ेद रौशनी की ठंडी लपट आती है
ले जाती है


: शजर १४.१२.१२ नई दिल्ली 

9/12/12

मालिश - लघुकथा

4 टिप्‍पणियां:

प्रोफ़ेसर गुस्से में आपे से बाहर हो रहा है, ये उसकी तेज आवाज़ से ज़ाहिर हो रहा था. “मुझ से हिन्दी की बात करता है. मुझ से, जो अपने सर के बाल से भी ज्यादा कहानियाँ लिख चुका हो “ क्लास की खुसुर-फुसुर को दबाते हुए प्रोफेसर चीखा “अनिमेष , तुम्हारी दोस्ती है ना डॉ. गुप्ता से “ ? कसैला सा स्वाद लिये मुँह से प्रोo बोला “उस से बोलो की अपनी क्लिनिक में मरीजों का इलाज़ करे” कहानियाँ, कवितायेँ लिखने के लिये हिन्दी पढ़नी होती है , डाक्टरी नहीं” .

क्लास में आज चर्चा का विषय था “हिन्दी और उसकी उप भाषाएँ”, मगर विषय बदल गया है, ये प्रो. के क्लास में आते ही सबको समझ आ गया था - “डॉ. गुप्ता की कहानी “शब्दांकन” में छपी है ! ” प्रोo की आवाज़ में जलन की सड़ांध आ रही थी. क्लास में पैदा होती आवाज़ों को दबाते हुए प्रो.बोला “अब तुम सीखना हिन्दी भाषा का शल्य कैसे करें”

छुपाने के बावजूद प्रोo ने अनिमेष की मुस्कान पकड़ ली “आप कृपया निकलें, चलिए जाइये, उस डॉ. गुप्ता से ही हिन्दी पढ़ लीजियेगा, एक उपन्यास लिखने वाला तुम्हे लेखन तो नहीं सिखा पायेगा ,हाँ मालिश करना सिखा देगा , ये भी सिखा देगा कि संपादकों की मालिश कैसे करो कि जो भी लिखो छप जाये”.

प्रोo के गुस्से में रात देर से सोने की बदबू आ रही थी और आँखों के रंग में माइग्रेन का नशा दिख रहा था. अनिमेष क्लास से बाहर जाने को था कि मोबाईल की घंटी बजी. फोन रखने पर उसके चेहरे कि मुस्कान देख प्रोo चिल्लाया “ऐसा क्या हो गया “ ?

अनिमेष क्लास से बाहर निकल गया “डॉ. गुप्ता के उपन्यास को मैग्सेसे पुरस्कार मिला है” ये कहते हुए .

8/12/12

धड़कता दिल उतारू है बगावत पर दीवाने का Dhadakta dil utaaroo hai baghawat par diwane ka

1 टिप्पणी:

धड़कता दिल उतारू है बगावत पर दीवाने का
नहीं सुनना उसे इक हर्फ़ भी कोई बहाने का

हद्दों के पार होती जा रही है हर परेशानी 
समय आया बगावत का बिगुल अब तो बजाने का

बहुत फैला लिये हैं पाँव उसने देख कर चलना
हमीं में छुप के बैठा है कहीं दुश्मन ज़माने का

उठो चुपचाप ना देखो लहू बहता हुआ ऐसे
यही तो वक्त है ताकत जिगर की आज़माने का

नहीं अच्छा उसे लगता किसी का बोलना कुछ भी
किया है उसने बंदोबस्त आवाजें दबाने का

कमर कस लो, जगे रहना, न आ जाये कहीं वापस
नहीं देना 'भरत' मौका उसे कब्ज़ा जमाने का 
Dhadakta dil utaaroo hai baghawat par diwane ka
Nahi sun’na usse ik harf bhi koyi bahane ka

haddoN ke paar hoti ja rahi hai ab pareshani
samay aaya baghawat ka bigul unko sunane ka

bahut phaila liye haiN paaNv ussne dekh kar chalna
hamiN me chhup ka baitha hai kahiN dushman zamane ka

uttho chupchaap naa dekho lahoo bahta hua aise
yahi to waqt hai taqat jigar ki aazmaane ka 

nahi achha usse lagta kisi ka bolna kuch bhi 
kiya hai ussne bandobast aawazeN dabane ka

kamar kas lo, jage rahna, na aa jaye kahN wapas
nahi dena ‘Bharat’ mouka usse kabza jamane ka

2/12/12

मतलब निकल गया है अब वो कहाँ मिलेगा matlab nikal gaya hai ab vo kahaN milega

2 टिप्‍पणियां:





बेकार रो रहे हो, आँसू न इक बचेगा 
मतलब निकल गया है अब वो कहाँ मिलेगा

आने लगा नज़र जो  दर पे गरीब की है
वो चाँद ईद का नहीं हर साल जो दिखेगा

पहली खबर अभी तक समझा नहीं ज़माना
ऐलान कर दिया की कोई न कुछ कहेगा

वादा गवाह का है हर राज़ खोल देगा
मालुम उसे नहीं क्या सच बोल कर मरेगा

मर के न लौट आये फिर दुश्मन-ए-जहाँ कहीं
पहरा शब-ए-क़यामत भी कबर पे रहेगा

रोटी अमीर की है, सोना अमीर का सब
बाकी बचा गरीब वो भूख से मरेगा

अंदर रहें या बाहर डरते नहीं ज़रा भी
हिस्सा बराबरी का हर लूट में मिलेगा 


bekaar ro rahe ho, aaNsu na ik bachega
matlab nikal gaya hai ab vo kahaN milega

aane lage nazar jo dar pe garib kii hai
vo chaaNd  eid ka nahi har saal jo dikhega

pahli khabar abhi tak samjha nahi zamana
ailaan kar diya kii  koyi na kuch kahega

vada gavaah ka hai har raaz khol dega
malum us’se nahi kya  sach bol kar marega

mar ke na lout aaye fir dushman-e-jahaN kahiN
pahra shab-e-qayamat bhi qa’bar pe rahega

roti amir kii hai sona amir ka sab
baqi bacha garib  vo bhookh se marega

aNdar raheN ya bahar darte nahi zara bhi
hissa barabari ka har loot meN milega 
... शजर 

23/11/12

इबादत ibadat

2 टिप्‍पणियां:
इबादत के घर में मिले खौफ होने के निशाँ
और अपने दिल में देखे तेरे होने के निशाँ

गुमशुदा इस जिंदगी का देखिये मकसद ज़रा 
हर जगह अब ये तलाशे तेरे होने के निशाँ

सँकरे होते जा रहे उम्र के सब रास्ते
याद आते अब हैं तिरे घर को जाने के निशाँ

ये तिरा मुझ पे करम है जो मैं तुझको जानता
ये वजूद--जिस्म देता तेरे होने के निशाँ

मिरी उम्मीद कर पूरी दिखा जल्वागिरी
रात गहरी दे रही है सुबह होने के निशाँ

ibādat kē ghar mēN mile khouf hōnē kē nishāN
aur apnē dil mēN dēkhē tērē hōnē kē nishāN

gumshudā is zindagī kā dēkhiyē maqsad zarā
har jagah ab yē talāshē tērē hōnē kē nishāN

saNkarē hōtē jā rahē umr kē sab rāstē
yād ātē ab haiN tire ghar kō jānē kē nishāN

yē tirā mujh pē karam hai jō maiN tujhkō jānatā
yē vajūd - ē - jism dētā tērē hōnē kē nishāN

ā mirī um'mīd kar pūrī dikhā jalvāgirī
rāt gaharī dē rahī hai subah hōnē kē nishāN
 भरत तिवारी 'शजर'

16/11/12

गुलाबी पाँव gulaabi paaNv

1 टिप्पणी:
अच्छा हुआ था
कि,
तुम्हारे गुलाबी पाँव
कभी मेरे घर में आये थे
〃〃〃 तुम्हारे जाने के बाद
पीछे से वापस लौट
वो अपना रंग मुझे दे गये थे
〃〃〃 वो उतरा नहीं
ना मुझे छोड़ कर कहीं गया
- तुमसे जुड़ा सब वैसे का वैसा ही
है मेरे भीतर


तुम भी • • •

achha hua tha
ki,
tumhare gulaabi paaNv
kabhi mere ghar meN aaye the
〃〃〃 tumhare jaane ke baad
peeche se wapas laout
vo apna rang mujhe de gaye the
〃〃〃 wo  utra nahi
na mujhe chhod kar kahin gaya
- tumse judda sab waise ka waisa hi
hai mere bheetar

tum bhi • • •


10/11/12

सोच अपनी आप ज़ाया और नाहक़ ना करें soch apni aap zaaya aur nahaq na kareN

2 टिप्‍पणियां:

सोच  अपनी  आप   ज़ाया   
और  नाहक़  ना   करें
आँख   देती   है  गवाही   
झांक लें  शक  ना   करें

कीजिये  थोड़ी   मुरव्वत  
इक  नज़र  देखें   इधर
इस तरह तो  बेदखल  
हमको  अचानक ना  करें

जो  हटा दे  रोज़  
चेहरे  से  नक़ाब - - झूठ इक
बात पर उसकी यकीं 
हम और कब तक ना करें

लाल -  नीली  बत्तियां  पहने   
मिले   बाज़ार   में
और  हम  से  कह गये के 
घर में रौनक ना करें

ठीक  है  के  
ज़ख्म  सारे  भूल फिर जायें शजर
मुस्कुराहट  पर   भरोसा  
अब  यकायक  ना  करें
soch apni  aap zaaya    
aur nahaqq  na kareN
aaNkh deti hai gawahi 
jhaaNk leN shaqq na kareN

kiiye thhodi  murav’vat   
ik nazar dekhen idhar
iss tarah toh be-dakhal  
ham’ko acha’nak na kareN

jo hata de roz  
chehre se naqaab - e - jhooth  ik
baat par usski  yakiN  
ham aur kab tak na kareN

laal - neeli  bat’ti’yaN pahne  
mile bazaar meN
aur ham se kah gaye ke 
ghar meN rounaq na kareN

theek hai ke  
zakhm saare  bhool  jaayeN  ‘Shajar’
muskura’hat par bharosa  
ab yak -a- yak na kareN 

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