जब भी माँ में होता हूँ छोटा होता हूँ
उसी के जन्मे उसी के हिस्से
को उसके ही बारे में लिखने को
क्या बोलना पढ़ेगा
जो पल-पल माँ को याद किये जाता है
उसे समझ नहीं आता कि माँ नहीं भी हो सकती
माँ बस होती है........... इससे आगे और पीछे ज़हन को नहीं पता
इस रिश्ते की जादूगरी
देखिये
जब भी माँ में होता हूँ छोटा होता हूँ
भूल जाती है
उम्र अपनी सुइयों को
मुस्कान अपने दुखों को
खुशियाँ अपने आप को
और ऐसा और ऐसा बहुत कुछ होने के लिए
माँ का ख्याल ही चाहिए होता है
माँ एक ख्याल ही तो है
एक
अजर
अमर
जिंदा खयाल
भरत तिवारी ११.०५.२०१४
नई दिल्ली