29/11/11

कवि की पेंटिंग Kavi ki Painting

1 टिप्पणी:
सादर भरत तिवारी/नई दिल्ली /29.11.2011/1:06 am 
Bharat Tiwari / New Delhi/ 29.11.2011/1:06am

19/11/11

Chhoti-Chhoti Badi-Badi Bate.n छोटी-छोटी बड़ी-बड़ी बातें

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Chhoti-Chhoti Badi-Badi Bate.n छोटी-छोटी बड़ी-बड़ी बातें
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saadar Bharat Tiwari / सादर भरत तिवारी
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9/11/11

पेरिस के बहुत ही अपने “म्युज़े रदां” से

2 टिप्‍पणियां:
कहाँ से
चुनकर लाऊं
शब्द फूलों से ...
जोड़ूँ
और मिला के
बना माला
दे दूँ
तुमको.......





कि
समझ जाओ तुम
कितना बेचैन हूँ
तुम्हारे लिए........ !

पिछली दफ़ा
माला ना बनी थी सुन्दर
कर ना पायी
बयान !

कमज़ोर शब्द...
कह ना सके तुमसे
भावना मेरी
आये वापस लेकर तुमसे
जवाब एक सवाल एक
“क्यों !! ? “
... थी माला कमज़ोर
या देखा ही नहीं तुमने...........

शब्दों में ताकत होती है
सोचा ना था
...
नहीं हैं
आड़ी-तिरछी
गोल-मटोल
सुंदर ज्यामितीय आकृतियां
उनमे “सब में” होता है
“वो सब” मेरा
है जो सिर्फ तुम्हारा
...
नहीं देखते तुम
तुम्हारी बदली प्राथमिकतायें
...
नहीं बदली, ना बदलेंगी
मेरी ये इच्छायें...
यहीं की यहीं, वहीँ की वहीँ
रहेंगी
चिरकाल तक
मेरी ये इच्छायें...

धरातल से लिख !
कर ओस से तर
आकाश को सौंप
कवि हुआ -
जीवित “स्टैचू ऑफ थिंकर”
अपनी ही पेरिस के बहुत ही अपने “म्युज़े रदां” में

भरत तिवारी, ६:५५, ९-११-२०११
नई दिल्ली
© भरत तिवारी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

2/11/11

wo khat / वो खत / ਵੋ ਖਤ

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wo khat
na jaane kab aaya tha
tareekh bhi nahin padi hai

aur mila bhi
wahan us kamre men
jahan bachpan se baahar aaya tha main

16 saal to ho hi gaye honge
jaane kaise rah gaya , khola tak nahin

aaj milne ka kuch makasad to tha
padte hi ,jagjeet ki yad aayi, ke "dene waale mujhe maujon ki.."

khair un dinon ko de gaya wo khat
aur samhala hai ab aise
jaise likhne wala khud mil gaya ho
aur wapas mere kandhe pe apna haath haule se rakh bola ho ki scooter dheere chalao


..bharat














वो खत
ना जाने कब आया था
तारीख भी नहीं पड़ी है

और मिला भी
वहाँ उस कमरे में
जहाँ बचपन से बाहर आया था मैं

१६ साल तो हो ही गये होंगे
जाने कैसे रह गया , खोला तक नहीं

आज मिलने का कुछ मकसद तो था
पड़ते ही ,जगजीत की याद आयी, के "देने वाले मुझे मौजों की.."

खैर उन दिनों को दे गया वो खत
और सम्हाला है अब ऐसे
जैसे लिखने वाला खुद मिल गया हो
और वापस मेरे कन्धे पे अपना हाथ हौले से रख बोला हो कि स्कूटर धीरे चलाओ


..भरत

ਵੋ ਖਤ
ਨਾ ਜਾਨੇ ਕਬ ਆਯਾ ਥਾ
ਤਾਰੀਖ ਭੀ ਨਹੀਂ ਪਡ਼ੀ ਹੈ

ਔਰ ਮਿਲਾ ਭੀ
ਵਹਾੰ ਉਸ ਕਮਰੇ ਮੇਂ
ਜਹਾੰ ਬਚਪਨ ਸੇ ਬਾਹਰ ਆਯਾ ਥਾ ਮੈਂ

੧੬ ਸਾਲ ਤੋ ਹੋ ਹੀ ਗਯੇ ਹੋਂਗੇ
ਜਾਨੇ ਕੈਸੇ ਰਹ ਗਯਾ , ਖੋਲਾ ਤਕ ਨਹੀਂ

ਆਜ ਮਿਲਨੇ ਕਾ ਕੁਛ ਮਕਸਦ ਤੋ ਥਾ
ਪਡ਼ਤੇ ਹੀ ,ਜਗਜੀਤ ਕੀ ਯਾਦ ਆਯੀ, ਕੇ "ਦੇਨੇ ਵਾਲੇ ਮੁਝੇ ਮੌਜੋਂ ਕੀ.."

ਖੈਰ ਉਨ ਦਿਨੋਂ ਕੋ ਦੇ ਗਯਾ ਵੋ ਖਤ
ਔਰ ਸਮ੍ਹਾਲਾ ਹੈ ਅਬ ਐਸੇ
ਜੈਸੇ ਲਿਖਨੇ ਵਾਲਾ ਖੁਦ ਮਿਲ ਗਯਾ ਹੋ
ਔਰ ਵਾਪਸ ਮੇਰੇ ਕਨ੍ਧੇ ਪੇ ਅਪਨਾ ਹਾਥ ਹੌਲੇ ਸੇ ਰਖ ਬੋਲਾ ਹੋ ਕਿ ਸ੍ਕੂਟਰ ਧੀਰੇ ਚਲਾਓ

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