31/8/10

चाय भी ठंडी हो गयी

उसको आखिर पैसों की उतनी चिन्ता क्यों नहीं रहती ? मैं देख रहा था की वो मन से अपना काम करे जा रही थी . सुबह सुबह रोज , अपने घर को छोड़ के किसी और के घर को देखना , सम्हालना , मुश्किल होता होगा . लेकिन उसको देख के नहीं लगता .
उसको शायद पैसों की उतनी चिन्ता इस लिए नहीं होती होगी क्योंकी सारी तो हम कर लेते हैं , सोंचती होगी जरूर क्योंकि जब वो मेरे कमरे में सफाई करने आती है तो कभी - कभी , मेरा मूड देख के कहती है , "अरे भईया आप आराम भी कर लिया करो कभी , हर समय इस लैइपताप में का बनाते रहते हो ? " और कभी जब देखती है की चाय वैसी ही रखी है तो "... देखिये चाय भी ठंडी हो गयी ... हाँ नहीं तो "
इस से ज्यादा नही कह पाती , के कहीं मैं गुस्सा ना हो जाऊं या फिर शायद नौकरी ना चली जाये... उसको भी शायद पैसों की चिन्ता हो जाती होगी
भरत
३१/०८/२०१०
१०:२५

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