21/1/13

जब नक़ाब-ए-दोस्ती बिकने लगी | jab naqab-e-dosti bikne lagi

3 टिप्‍पणियां:
Chaos after the news by Darwin Leon
नयी गज़ल के कुछ शेर
जब नक़ाब-ए-दोस्ती बिकने लगी,
साँस घुटती सिसकियाँ भरने लगी...

शक्ल असली सामने आ ही गयी,
चुस्त बखिया थी मगर खुलने लगी...

कम नहीं थे गम यहाँ पहले भी कुछ,
लो अटकती साँस भी रुकने लगी...

दूरियों के छुप ना पाये तब निशाँ,
जब ज़रा सी बात भी बढ़ने लगी...

इश्क भी ना बच सका माहौल से,
चाल शतरंजी यहाँ बिछने लगी...

...शजर 
nayi ghazal ke kuch sher 
jab naqab-e-dosti bikne lagi,
saaNs ghut'ti siskiyaN bharne lagi...

shakl asli saamne aa hi gayi,
chust bakhiya thi magar khulne lagi...

kam nahi the gham yahaN pahle bhi kuch,
lo atak’ti saaNs bhi rukne lagi...

dooriyoN ke chhup na paye tab nishanN,
jab zara si baat bhi badhne lagi...

ishq bhi naa bach saka ma'houl se,
chaal shat’raNji yahaN bichhne lagi...

... shajar

14/1/13

albumoN me qaid haiN lamhe hasiN

2 टिप्‍पणियां:

अलबमों में क़ैद हैं लम्हे हसीं
कैद है उसमे दुपहरी बचपने की
क़ैद हैं शाम-ए जवां की धड़कने
क़ैद है वो दोस्ती जो खो गयी
क़ैद है माँ की हँसी जो सो गयी
    ज़र्द होते कागजों के रंग में
    कैद हैं तारीख जो मिटती नहीं
    कैद हैं वो याद जो जाती नहीं
    कैद है वो शाम जो आती नहीं

तोड़ दें इस क़ैद को आओ अभी

    क़ैद से आजाद कर दे साँस को
    क़ैद से बाहर ले आयें तितलियाँ
    क़ैद से बुलबुल को भी बाहर करें
        क़ैद से हर क़ैद को अब तोड़ कर
    आओ कर लें क़ैद अपने दिल जवां

सात समन्दर का ये पहरा
    कुछ न फिर कर पायेगा
    देखना जान-ए-जिगर
जब वो मंजर आएगा

                              : शजर 

albumoN me qaid haiN lamhe hasiN
qaid haiN usme duphari bachpane ki
qaid haiN sham-e-jawaN ki dhadkaneN
qaid hai vo dosti jo kho gayi
qaid hai maa ki haNsi jo so gayi
    zard hot’te kagazoN ke raNg meN
    qaid haiN taarikh jo mit’ti nahiN
    qaid hai vo yaad jo jaati nahiN
    qaid hai vo sham jo aati nahiN

todd deN is qaid ko aao abhi

    qaid se aazad kar deN saaNs ko
    qaid se bahar le aayen titliyan
    qaid se bulbul ko bhi bahar kareN
        qaid se har qaid ko ab todd kar
aao kar leN qaid apne dil jawaN

saat samandar ka ye pahra
    kuch na fir kar payega
    dekhna jaan-e-jigar
jab vo manzar aayega

                              : Shajar

7/1/13

फ़िर करी गंगा मैली

1 टिप्पणी:

गंगा ने हो निर्मल
अभी बहना शरू करा था
अभी निर्मल हुई भर थी
अस्थियों से दामिनी की
हो पवित्र 
मिलती नहीं वो राख सदियों
जो कर सके यों निर्मल 

अभी बहना शरू करा भर था
आये नहाने 
अपने किये करे की 
बोलती राख से सने 
बकरी सा मैं-मैं करते 
लेडियाँ हाथ में लिये
मैं मैं

इतना अहम 
इतनी अहम 
सह ना सकी
बह ना सकी 
साफ़ और रह ना सकी
दामिनी तो स्वच्छ थी
दामिनी तो स्वच्छ है
स्वच्छता की देवी वो
चल पड़ी आगे वहाँ को
न पहुँचे जहाँ वो - जो हर जगह पहुँचे 

वसुंधरा की सीध में आकाश गंगा थी
प्रलय से बचाने को जिसने लड़ा
ना देखें हम जो - 
दिखा कर हमें
खुश थी शिव की जटा की राख को पा कर

बकरियों के झुंड पहले
छुप के आये 
बाँए से आये
दाएँ से आये 

वो भी आये जो कभी ना आये 
बहती गंगा में खूब नहाये 
वर्षों वर्ष की मैल 
दाएँ-बाएं छुपाये

क्यों ना हो फ़िर गंगा मैली
फ़िर करी गंगा मैली

'शजर' ७.१.१३ - ०४:१८

नेटवर्क ब्लॉग मित्र