यहाँ के सारे अँधेरे जाते …
तूने भरा होगा अपनी बाँहों में
यों नहीं ख्वाब महकते आते …
अब मेरी पलक नहीं झुकती
नाम हवाओं में जो लिखे जाते …
इश्क में खबर नहीं थी हमको
ये चाँद सिर्फ ईद में नज़र आते...
कुछ इतना ताज़ा वो तेरा अहसास
‘भरत’ के घाव खुद-ब-खुद भर जाते…
भरत ९/१२/२०१० नई दिल्ली
ईद के चाँद से घाव भरने के ख्याल दूर तक ले गए और कहीं यादों के महकते गुलशन में छोड़ दिया अहसास को महकने के लिए
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