29/3/13

सब छूट जाता है

4 टिप्‍पणियां:

सब छूट जाता है
जिसका छूटता है उसे क्या पता
एक-एक पल बेच
कल खरीदता
खुशियाँ बेचता
खरीदने के लिए - ख़ुशी
फिर
सब छूट जाता है
बेचे हुए पल और खुशियाँ ही रास्ता देखते हैं
सब छूट जाता है Time Reveals Truth Giovanni Domenico Cerrini
ख़रीदी खुशियों के कितने खरीददार कितने उम्मीदवार
चक्र में पीछे
अनभिज्ञ
हाथ उठा दर्ज करते
अपनी लालसा
भीड़ उठाये हाथ लालसा के  
खरीदने को अनवरत हाथापाई करती
खरीदती ! घातु कागज़ पत्थर के सपने
बेचती आँचल महक मुस्कान,
दुलार बचपन जवानी,
गाँव गली प्यार
अपने सपने
तभी
सब छूट जाता है

कुछ ना बना सकने वाला
बनाने वाले की कृति पर अपना नाम लिख
अपनी मान लेता ,
खुश होता
अपनी बता
अपनी समझ
चक्र का हिस्सा है
चक्र घुमा
और
सब छूट जाता है

17/3/13

भूख खबर मवाद

2 टिप्‍पणियां:

हिंदी कविता समाज की गंदगी खबर
         खबर
         भूख की
         भूखों की
         भूख बेचने वालों की
         नंगों की
         नंगे होतों की
         नंगे करे जातों की
         जंगल की
         जंगलियों की
         जंगलराज की
         जंगल बचाने की
         ... डिमांड में है
         जंगलियों की भूख बढ़ रही है
         डिमांड की नियति – बदलते रहना


         खबर
         बेचने की
         बिकने की
         बिक गए की
         देश की
         विदेश की
         देशप्रेम की
         विदेश प्रेम की
         ... डिमांड में है
         प्रेम बिक रहा है
         प्रेम की नियति – बदल रही है

         अन्दर झाँकना बंद कर दिया
         बाहर देखना मना है
         मैल –
         चमड़ी का पोर पार कर गयी
         रंग खून का और रंगत मवाद की
         मवाद से चले खबरी-मसाला-मशीन
         खबरों के प्रेमी -
              सब ...

14/3/13

कहाँ हो मम्मी...!

3 टिप्‍पणियां:
कहाँ हो मम्मी...!
छत पर..
रसोई में ..
बाहर गार्डन में...
स्कूल से तो आगई होंगी.. !?!

बगीचे में गौरैया भी पूछ रही है..

रसोई के सारे मर्तबान चुप हैं..

मेरी चरखी की सद्दी पीली हो गयी अब तो,

स्कूल चल रहा है..

कहाँ हो मम्मी...?
where are you mother poetry bharat tiwari shajar कहाँ हो मम्मी कविता भरत तिवारी शजर
कैक्टस का फूल
- रात खिला था ,
गए सालों जैसा ,
कमल सा मुह बाये...
तुम्हे खोज रहा था...
सुबह सूख गया , अगले साल तक के लिए,

आधी गौरैया कहीं चली गयीं...

पतंग का रंग उड़ गया..............
हाथ लगाया तो कन्ना टूट गया..

मर्तबान से अचार की महक भी चली गयी........

स्कूल में नयी बिल्डिंग बनी देखी,
लड़कियां टीचर को मैडम बुलाती हैं,
'बहन जी ' नहीं.......!

कहाँ हो मम्मी..

सब बदल रहा है,

लेकिन चाँद नहीं बदला...
करवा चौथ भी नहीं..
बस गणेश जी नहीं आते गन्दा करने अब,

उनके साथ हो न आप....!?!
चाँद के पीछे..

देख रही होगी..
मैं भी नहीं बदला ......
"Mother and Child" by Seshadri Sreenivasan

- शजर

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