सब छूट जाता है
जिसका छूटता है उसे क्या पता
एक-एक पल बेच
कल खरीदता
खुशियाँ बेचता
खरीदने के लिए - ख़ुशी
फिर
सब छूट जाता है
बेचे हुए पल और खुशियाँ ही रास्ता देखते हैं
ख़रीदी खुशियों के कितने खरीददार कितने उम्मीदवार
चक्र में पीछे
अनभिज्ञ
हाथ उठा दर्ज करते
अपनी लालसा
भीड़ उठाये हाथ लालसा के
खरीदने को अनवरत हाथापाई करती
खरीदती ! घातु कागज़ पत्थर के सपने
बेचती आँचल महक मुस्कान,
दुलार बचपन जवानी,
गाँव गली प्यार
अपने सपने
तभी
सब छूट जाता है
कुछ ना बना सकने वाला
बनाने वाले की कृति पर अपना नाम लिख
अपनी मान लेता ,
खुश होता
अपनी बता
अपनी समझ
चक्र का हिस्सा है
चक्र घुमा
और
सब छूट जाता है