बड़े दिनों से टाल रहा था
शायद...
जब से होश सम्हाला
उसने कोशिश की , बहुत कोशिश की
फितरत
संगत
काहिलपन
या शायद हिम्मत की कमी ...
यही लगता है
इतना कुछ था उसके पास
ज्ञान की सारी जानकारी
हिम्मत की कमी...
आड़े आती रही
मान ही लिया ना कि कमी थी ...
कभी दो – चार बातें बताई उसने
तो
डर गए , सच हमेशा नहीं जीत पाता
वही... हिम्मत की कमी
बैठी रही जमा के आसन लेकिन
दो दो चार चार करके इकट्ठा
और अब जब आसन खुला
सब भेद खुलने शुरू
ज्ञान का गोमुख दिखा
एक पतली धार है अभी तो
हिम्मत भी खुली है कुछ
अब सागर को होना है
सफ़र शुरू ...
....भरत १७/०९/२०१० – ००:४८
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंशब्द नहीं है तारिफ के...
हिम्मत की कमी...
हर किसी को एक समय लगता है कि उसकी हिम्मत अब जवाब दे दी..
लेकिन दुबारा प्रयास करना ही हमारी फितरत है...