9/12/12

मालिश - लघुकथा


प्रोफ़ेसर गुस्से में आपे से बाहर हो रहा है, ये उसकी तेज आवाज़ से ज़ाहिर हो रहा था. “मुझ से हिन्दी की बात करता है. मुझ से, जो अपने सर के बाल से भी ज्यादा कहानियाँ लिख चुका हो “ क्लास की खुसुर-फुसुर को दबाते हुए प्रोफेसर चीखा “अनिमेष , तुम्हारी दोस्ती है ना डॉ. गुप्ता से “ ? कसैला सा स्वाद लिये मुँह से प्रोo बोला “उस से बोलो की अपनी क्लिनिक में मरीजों का इलाज़ करे” कहानियाँ, कवितायेँ लिखने के लिये हिन्दी पढ़नी होती है , डाक्टरी नहीं” .

क्लास में आज चर्चा का विषय था “हिन्दी और उसकी उप भाषाएँ”, मगर विषय बदल गया है, ये प्रो. के क्लास में आते ही सबको समझ आ गया था - “डॉ. गुप्ता की कहानी “शब्दांकन” में छपी है ! ” प्रोo की आवाज़ में जलन की सड़ांध आ रही थी. क्लास में पैदा होती आवाज़ों को दबाते हुए प्रो.बोला “अब तुम सीखना हिन्दी भाषा का शल्य कैसे करें”

छुपाने के बावजूद प्रोo ने अनिमेष की मुस्कान पकड़ ली “आप कृपया निकलें, चलिए जाइये, उस डॉ. गुप्ता से ही हिन्दी पढ़ लीजियेगा, एक उपन्यास लिखने वाला तुम्हे लेखन तो नहीं सिखा पायेगा ,हाँ मालिश करना सिखा देगा , ये भी सिखा देगा कि संपादकों की मालिश कैसे करो कि जो भी लिखो छप जाये”.

प्रोo के गुस्से में रात देर से सोने की बदबू आ रही थी और आँखों के रंग में माइग्रेन का नशा दिख रहा था. अनिमेष क्लास से बाहर जाने को था कि मोबाईल की घंटी बजी. फोन रखने पर उसके चेहरे कि मुस्कान देख प्रोo चिल्लाया “ऐसा क्या हो गया “ ?

अनिमेष क्लास से बाहर निकल गया “डॉ. गुप्ता के उपन्यास को मैग्सेसे पुरस्कार मिला है” ये कहते हुए .

4 टिप्‍पणियां:

  1. कई लोग ऐसे होते हैं जो विद्वता तो हासिल कर लेते हैं, पर इंसानी कमजोरियों की जकड़न से छुटकारा नहीं पाते, प्रोफेसर का हिन्दी ज्ञान तो बड़ा होगा पर दिल बहुत छोटा था, सुंदर शब्द संयोजन, प्रभावी संप्रेसण॰

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  2. साहित्य में दो प्रकार के लोग होते हैं: एक साहित्य लिखने वाले और दूसरे उन पर चिढने वाले :)

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