10/11/12

सोच अपनी आप ज़ाया और नाहक़ ना करें soch apni aap zaaya aur nahaq na kareN


सोच  अपनी  आप   ज़ाया   
और  नाहक़  ना   करें
आँख   देती   है  गवाही   
झांक लें  शक  ना   करें

कीजिये  थोड़ी   मुरव्वत  
इक  नज़र  देखें   इधर
इस तरह तो  बेदखल  
हमको  अचानक ना  करें

जो  हटा दे  रोज़  
चेहरे  से  नक़ाब - - झूठ इक
बात पर उसकी यकीं 
हम और कब तक ना करें

लाल -  नीली  बत्तियां  पहने   
मिले   बाज़ार   में
और  हम  से  कह गये के 
घर में रौनक ना करें

ठीक  है  के  
ज़ख्म  सारे  भूल फिर जायें शजर
मुस्कुराहट  पर   भरोसा  
अब  यकायक  ना  करें
soch apni  aap zaaya    
aur nahaqq  na kareN
aaNkh deti hai gawahi 
jhaaNk leN shaqq na kareN

kiiye thhodi  murav’vat   
ik nazar dekhen idhar
iss tarah toh be-dakhal  
ham’ko acha’nak na kareN

jo hata de roz  
chehre se naqaab - e - jhooth  ik
baat par usski  yakiN  
ham aur kab tak na kareN

laal - neeli  bat’ti’yaN pahne  
mile bazaar meN
aur ham se kah gaye ke 
ghar meN rounaq na kareN

theek hai ke  
zakhm saare  bhool  jaayeN  ‘Shajar’
muskura’hat par bharosa  
ab yak -a- yak na kareN 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुबसुरती से लिखी गयी गजल ,

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  2. आपका शजरनामा देखा और सोच भी। बहुत खूब लिखा है मुस्कुराहट पर भरोसा अब यकायक ना करें, अच्छी ग़ज़ल और अच्छा ब्लाॅग। गर फुरसत मिले तो http://sumarnee.blogspot.in/ पर एक ग़ज़ल आपके इंतजार में है। शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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