11/6/13

सारे रंगों वाली लड़की

सारे रंगों वाली लड़की
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कहाँ हो

सूरज इस काली रात को
जिसने सब छिपा लिया
उसे धराशाई कर रहा है

आम के पेड़ में  अभी-अभी जागी कोयल
धानी से रंग का बौर
सब दिख रहे हैं
उन आँखों को
जो तुम्हे देखने के लिए ही बनीं

सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो

तुम्हारी साँसों का चलना
मेरी साँसों का चलना है
और अब मेरी साँसें दूर हो रही हैं

सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो

गए दिनों के प्रेमपत्र पढ़ता हूँ
जो बाद में आया – वो पहले
सूख रही बेल का दीवार से उघड़ना
सिरे से देखते हुए जड़ तक पहुँचा मैं
पहले प्रेमपत्र को थामे देख रहा हूँ – पढ़ रहा हूँ
देख रहा हूँ पहले प्रेमपत्र में दिखते प्यार को
और वहीँ दिख रहा है नीचे से झांकता सबसे बाद वाला पत्र
और दूर होता प्रेम

सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो

वहाँ हो
यहाँ हो


भरत तिवारी, ११.६.२०१३  नई दिल्ली 


12 टिप्‍पणियां:

  1. और वहीँ दिख रहा है नीचे से झांकता सबसे बाद वाला पत्र
    और दूर होता प्रेम ....

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  2. और वहीँ दिख रहा है नीचे से झांकता सबसे बाद वाला पत्र
    और दूर होता प्रेम ....

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  3. "देख रहा हूँ पहले प्रेमपत्र में दिखते प्यार को
    और वहीँ दिख रहा है नीचे से झांकता सबसे बाद वाला पत्र
    और दूर होता प्रेम". अच्छी पंक्तियां हैं. झटका भी देती हैं.

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  4. bahut pyaari rachnaa ...waah ..aur do antim pankyiyaan ..kamaal ..poori rachnaa kaa kathya samaahit kar liyaa ............badhaai

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  5. सारे रंगों वाली रचना .....लाजवाब ॥

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  6. लाजवाब लिखा है भरत जी !

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