परिधि थी अब क्यों तोड़ी ये मसला है वैसे देखा जाये तो कहाँ कोई मानता है आज कल आज कल परिधि को लांघना ही फैशन तोडें क्यों चित भी और पट भी तोड़ने में दोनों मिलते नहीं लांघो और सहूलियत देखी तो वापस खामियाज़ा भुगतने के समय खामियाज़ा माँग लो उल्टी गंगा ज्यादा नहीं बह सकती बह ही नहीं सकती वैसे दुनिया भी बीसियों हैं और सब की अपनी अपनी नियमावली सब अपने में बड़ी बड़ी इधर वाला उधर जाने को आतुर लांघा तो इधर से गया उधर का पता नहीं ऊँची वाली दुनिया नीची नीची वाली ऊँची उसके लिये वो इसके लिये ये बांधो थोड़ा सा संकीर्णता के लिये नहीं सम्पूर्णता के लिये अगली पीढ़ी का सोंच लो अपना ही सोंच लो कम से कम
भरत तिवारी ००:५५ २८/०९/२०१० नयी दिल्ली | gallery.dralzheimer.stylesyndication.de |
28/9/10
सम्पूर्णता के लिये…
at
12:56 am
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
भरत भाई ....आज तो आपने गज़ब ढाई है भाई ....परिधि को लांघना ही फैशन...वाह, वाह .... ...खामियाज़ा भुगतने के समय अगली पीढ़ी का....सोंच लो ....अपना ही सोंच लो कम से कम....अच्छा कटाक्ष ......सुन्दर अभिव्यक्ति भाई जी .......!!!!!!!!!!!!!!.
जवाब देंहटाएंa dilemma well expressed!
जवाब देंहटाएंregards,