17/5/11

कहीं कोई सिरा अधूरा नहीं



ब्रहमांड के अंग 
गिने नहीं 
समा गया 
रचना जब विधाता की हो
तो उसका आदि अन्त कहाँ 


कल्पना की सीमा के विस्तार के कई अंतों के बाद 
कई प्रकाश वर्षों के अन्त के अन्त में
मैं कहीं ये लिख रहा हूँ 
वो वहाँ से लिखा रहा है
आप यहाँ लिखा देख रहे हैं
उसके जाल मे उलझन नहीं है 
कोई अटकन नहीं
कहीं कोई सिरा अधूरा नहीं 
सब जुड़े हैं
सारे सन्देश अंतर से वहाँ उसके पास जा रहे निरंतर 


वो ही करा देता है विनाश
वो ही बचा सकता है 
वो ही करा सकता है द्वेष 


प्रेम वो खुद है 
असंख्य ब्रह्मांड मे फैला .....
प्रेम !
वो रास्ता है जो उस तक जाता है
उसको चुन कर हम उस तक पहुँचे


मनुष्य योनी वो देता है सिर्फ इसलिए |
......सर्वाधिकार सुरक्षित भरत तिवारी

7 टिप्‍पणियां:

  1. मंथन सोच का .. और ब्रह्माण्ड पर ऐसा विश्लेषण करती यह कविता बहुत अच्छी लगी... बधाई... सुन्दर रचना के लिए..

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  2. ब्रह्मांड पर मथन कर बनी यह रचना बहुत अच्छी लगी.. बधाई... इस सुन्दर रचना के लिए ..

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  3. न आदि है , न अंत है
    'वो' तो अनंत है
    'वो ' तुममे है
    'वो' मुझमे है
    वो तो कड़ कड़ में है
    सच है ये ...
    सारे सन्देश हैं उसके पास जारहे
    ध्यान तुम इतना रखना ...
    विचलित न हो 'वो'
    तुम्हारे किसी सन्देश से
    उसकी बनायीं हर रचना से प्रेम करोगे ..
    तो स्वतः ही उस तक पहुँच जाओगे ..!!!

    ब्रहमांड तो अनंत है .. और उस अनंत को अपने अपनी रचना के द्वारा आलिंगन कर लिया ! विराट को सूक्ष्म कर दिया .. सूक्ष्म को विराट कर दिया ! आपकी लेखिनी अब अमृत बरसा रही है ... अतिसुन्दर !!!

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  4. हर पल तरसी
    दर दर भटकी
    पिया की एक झलक को मैं निसदिन तरसी
    थकी हारी जो एक पल को ठहरी
    हलचल कुछ मेरे भीतर ही हुई
    ...पिया छुपे थे मुझमें ही
    कैसे ये मैं भूल गयी
    देख सन्मुख उस 'साकार' को
    झर झर मेरी अँखियाँ बरसी ..!!!

    jab shayad 'vo' nirakaar humare sanmukh hoga .. to shayad aisa hi hoga ..:)

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  5. ब्रहमांड. अनंत ,अभेद, अकल्पनीय ..........शून्य से शून्य तक का सफ़र .......फिर भी ..........''.कोई अटकन नहीं
    कहीं कोई सिरा अधूरा नहीं
    सब जुड़े हैं''..........सच ..........आपके शब्दों में सार्थकता है भरत जी !!!

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  6. बहुत ही सुंदर ब्रह्माण्ड को रचती रचना .... पढकर लगता हैं ब्रह्माण्ड मेरे सामने हैं ..... बहुत सुंदर दोस्त ......

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  7. शुक्रिया
    डॉ एम एन गैरोला साहब
    मित्र डॉ. नूतन डिमरी गैरोला जी
    शोभा जी
    गायत्री जी और दोस्त सुनीता

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