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रजनी मोरवाल अहमदाबाद में अध्यापिका प्रतिभावान लेखिका है कई कविता संग्रह और अमूमन सारी ही साहित्यिक पत्रिकाओं में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं. |
चाँदनी का नदारद चेहरा ... रजनी मोरवाल
मेरी आँखों ने
दौड़-दौड़ कर छत से
बादलों की करवटों को
टटोला कल रात,
कि कहीं तो कोई हिस्सा
चाँदनी का मिले मगर.....
सियाह आसमान से चांदनी
कुछ यूँ रिस गई
जैसे .....
ज़िन्दगी से कोरे वादों का
उलीचना या फिर
बेमन से खायी,अधूरी-सी
कसमों का टूट कर बिखर जाना |
टूटते तारों कि डायरियों के
कुछ मुड़े-टुडे पन्नों में ,
एक हर्फ़ का पिछला हिस्सा
तेरे नाम से मिलता-जुलता सा लगा,
ज़रा गौर से देखा तो
नाम ही लगा था तेरा
और...............
साथ में रखी थी हकीकत में
देखे कुछ ख्वाबों क़ी लकीरें भी ,
जो कुछ धुंधली पड़ती हुई ,
याददास्त क़ी मानिंद ,
देह से चिपकी पड़ी हैं अब तक..........
कुछ यादें चाय क़ी चुस्कियों में
प्यालों के किनारों पर
पपड़ियों क़ी तरह सूख आईं हैं ,
जिनको खुरचना भी मुनासिब नहीं
शायद ..........
वर्ना तन्हाई के दामन में ज़ख्म,
नासूरों क़ी शक्ल में चमक आयेंगे
और..........
दिनों क़ी दर्द भरी खामोशियाँ ,
रातों पर पसर जाएँगी,
छत से कई बार ढूँढा कल रात मैंने
चाँदनी का नदारद चेहरा ,
नीर जामुनी रात में कुछ-कुछ
मेरा सा लगा वो मुझको |
मेरी आँखों ने
जवाब देंहटाएंदौड़-दौड़ कर छत से
बादलों की करवटों को
टटोला कल रात,
कि कहीं तो कोई हिस्सा
चांदनी का मिले मगर.....
सियाह आसमान से चांदनी
कुछ यूँ रिस गई
जैसे ..... par chaandnee itne parde mai gai kaha. aia to nahee tum khud chandni ban gaye ho. parkaya pravesh
sensitive adorably emotional beautiful poem wah rajani wah
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