खुद को खुद से हम हटाने लगे हैं
आह-ए-दिल भी अब छुपाने लगे हैं ...
कहीं डोर टूटे ना दिल की लगी की,
इस ख़्याल से हम घबराने लगे हैं..
तुम्हे भुलाने की कोशिश में अब,
दर्द से रिश्ता हम निभाने लगे हैं..
तुमने नज़रें फेरीं यूँ आशिक से,
देख कर ये अदा मुस्कुराने लगे हैं...
इज़ाफा हुआ जाये गम-ए-शाम में,
झोंके तेरी खुशबू के जो आने लगे हैं ...
सुदामा हैं कहाँ आज के दौर में,
दोस्त भी दुश्मनी निभाने लगे हैं...
'दस्तकार' की मुहब्बत को ना जाने तू,
खुद को तेरे नाम से हम बुलाने लगे हैं
...
Regards Bharat Tiwari | Sent on my BlackBerry® from Vodafone
आह-ए-दिल भी अब छुपाने लगे हैं ...
कहीं डोर टूटे ना दिल की लगी की,
इस ख़्याल से हम घबराने लगे हैं..
तुम्हे भुलाने की कोशिश में अब,
दर्द से रिश्ता हम निभाने लगे हैं..
तुमने नज़रें फेरीं यूँ आशिक से,
देख कर ये अदा मुस्कुराने लगे हैं...
इज़ाफा हुआ जाये गम-ए-शाम में,
झोंके तेरी खुशबू के जो आने लगे हैं ...
सुदामा हैं कहाँ आज के दौर में,
दोस्त भी दुश्मनी निभाने लगे हैं...
'दस्तकार' की मुहब्बत को ना जाने तू,
खुद को तेरे नाम से हम बुलाने लगे हैं
...
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''सुदामा हैं कहाँ आज के दौर में,
जवाब देंहटाएंदोस्त भी दुश्मनी निभाने लगे हैं''... आज के दौर में बहुत सटीक पंक्तियाँ ........बहुत खुशकिस्मत होते हैं जिन्हें सच्ची दोस्ती मिलती है ....
भाई क्या कमाल लिखते हो आप भी सब तहें हट जाती हैं और सीधा दिल पर बात पहुँच जाती है काश मेरे शब्दों मैं भी ये पैनापन आ पाए ...... रोज नया पाठ मिलता है आपसे भाई .... खुशनसीबी है मेरी
जवाब देंहटाएंkamaal kamaal kamaal bhai..
जवाब देंहटाएंतुम्हारे दिए हर जख्म ...
जवाब देंहटाएंफूलों की तरह सहेज रक्खी थी
अब शायद ये मुरझाने ही वाले थे ..
आज पाकर कुछ बूँदे मेरे आँसुओं की
देखो , ये फिर महक उठे ...!!!
बहुत सुन्दर रचना भारत जी , बहुत शुभकामनायें आपको ........