किवाड़ वो मोटे वाले ही रहे होंगे.....उनमे चिटकनी तो होती नहीं थी....लकड़ी की एक फाचट रही होगी..जो एक खांचे में जाके चिटकनी का काम करती रही होगी. .....हाँ सांकल का वजूद तो रहा ही होगा....... यादों का दरवाजे पे आना......दृष्टिभ्रम तो कर ही देता है. दरवाजे को बंद करने की अपील थी या आदेश. दरवाजों को बंद करके रखना......कुण्डी के जोर से पटकते हुए सुनने की तमन्ना-वश ही होगा शायद. ---------यादों को हक्कीकत में उतारने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी भरत भाई.........ग्रामीण शब्दों का प्रयोग शब्दों को गहरे अर्थों को समाहित किये हुए है......वाकई.
किवाड़ वो मोटे वाले ही रहे होंगे.....उनमे चिटकनी तो होती नहीं थी....लकड़ी की एक फाचट रही होगी..जो एक खांचे में जाके चिटकनी का काम करती रही होगी. .....हाँ सांकल का वजूद तो रहा ही होगा.......
जवाब देंहटाएंयादों का दरवाजे पे आना......दृष्टिभ्रम तो कर ही देता है.
दरवाजे को बंद करने की अपील थी या आदेश.
दरवाजों को बंद करके रखना......कुण्डी के जोर से पटकते हुए सुनने की तमन्ना-वश ही होगा शायद.
---------यादों को हक्कीकत में उतारने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी भरत भाई.........ग्रामीण शब्दों का प्रयोग शब्दों को गहरे अर्थों को समाहित किये हुए है......वाकई.
सुदेश भाई वो कुण्डी थी जो अब चिटकनी हो गयी सांकल से होते होते ...
हटाएंआपने रचना को अपना प्यार दिया
तहे दिल से आभार आपका
सादर