29/3/13

सब छूट जाता है


सब छूट जाता है
जिसका छूटता है उसे क्या पता
एक-एक पल बेच
कल खरीदता
खुशियाँ बेचता
खरीदने के लिए - ख़ुशी
फिर
सब छूट जाता है
बेचे हुए पल और खुशियाँ ही रास्ता देखते हैं
सब छूट जाता है Time Reveals Truth Giovanni Domenico Cerrini
ख़रीदी खुशियों के कितने खरीददार कितने उम्मीदवार
चक्र में पीछे
अनभिज्ञ
हाथ उठा दर्ज करते
अपनी लालसा
भीड़ उठाये हाथ लालसा के  
खरीदने को अनवरत हाथापाई करती
खरीदती ! घातु कागज़ पत्थर के सपने
बेचती आँचल महक मुस्कान,
दुलार बचपन जवानी,
गाँव गली प्यार
अपने सपने
तभी
सब छूट जाता है

कुछ ना बना सकने वाला
बनाने वाले की कृति पर अपना नाम लिख
अपनी मान लेता ,
खुश होता
अपनी बता
अपनी समझ
चक्र का हिस्सा है
चक्र घुमा
और
सब छूट जाता है

4 टिप्‍पणियां:

  1. kabhi kabhi lagta hai kya yah jeewan hamara hai.khushiyan khareedne ki chahat mein jindgi bech dete hain aur jab wapis lete hain to jeene ka samay adhik nahin bacha hota.gaon yadon mein hi madhur hai.vahan jao to logon ka jeewan dekh dil saham jata hai.gambheer kavita.

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  2. जीवन इसी छूट जाने का नाम है. बढ़िया कविता भारत भाई !

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