13/1/11

राख

राख

तुम्हारे अन्तर की
उड़ के
घट को मेरे
अंकवार कर गयी

मौन की भाषा
बोलता
सुनता
मैं

राख से शब्द
भर गये
और
मौन मूक सा
इधर उधर
अन्धक हो
अन्धक से विस्मय

भरत १३/०१/२०१० नयी दिल्ली

1 टिप्पणी:

  1. राख से शब्द
    भर गये
    और
    मौन मूक सा
    इधर उधर
    अन्धक हो
    अन्धक से विस्मय

    भारत जी .. एक और अदभुत रचना आपकी ..बहुत शुभकामनायें ..
    ईशवर से यही दुआ करती हूँ ... आपकी लेखिनी में और चार चाँद लगे ..!!!

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