सत्य है तभी सुंदर है. भरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है. विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे. देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके कलम आई उसी ने सच को आग लगाई" ----------------- =======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है. भरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है. विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे. देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके कलम आई उसी ने सच को आग लगाई" ----------------- =======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है. भरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है. विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे. देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके कलम आई उसी ने सच को आग लगाई" ----------------- =======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है. भरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है. विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे. देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके कलम आई उसी ने सच को आग लगाई" ----------------- =======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है. भरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है. विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे. देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके कलम आई उसी ने सच को आग लगाई" ----------------- =======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है. भरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है. विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे. देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके कलम आई उसी ने सच को आग लगाई" ----------------- =======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है.
जवाब देंहटाएंभरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है.
विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे.
देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके
कलम आई
उसी ने सच को
आग लगाई"
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=======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है.
जवाब देंहटाएंभरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है.
विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे.
देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके
कलम आई
उसी ने सच को
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=======बहुत शानदार रचना है===========
सत्य है तभी सुंदर है.
जवाब देंहटाएंभरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है.
विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे.
देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके
कलम आई
उसी ने सच को
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सत्य है तभी सुंदर है.
जवाब देंहटाएंभरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है.
विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे.
देशप्रेमी के मुखोटों का अस्तित्व बाज़ार वाद में है......हरेक चीज़ को नफ़ा-नुक्सान से तोला जाता है. कर्म के बजाए फल की चिंता ज्यादा बनती जा रही है.
"हाथ जिसके
कलम आई
उसी ने सच को
आग लगाई"
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सत्य है तभी सुंदर है.
जवाब देंहटाएंभरत जी की इस रचना ने समाज के बुद्धिमान नाम के जानवरों पे तगड़ा झटका मारा है. ऐसा काम वास्तव में कोई ऐरा-गैरा नथू-खेरा नहीं कर सकता. कलम के सिपाही जिस दौर में बंधुवा मजदूर हो ऐसे समय में भरत साहब जैसे रचनाकारों की अहम् जरूरत समाज को है.
विभीषणों के रहते हुए महाशक्ति बन पायेगा भारत इसमें संशय गज़ब का है. इक्कीश्वीं सदी के आरम्भ के दशक कोई तीर नहीं मार पाए हैं. आठ साल में कौन से तीर मार लेंगे इन विभिषनों के सहारे.
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कलम आई
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"हाथ जिसके
जवाब देंहटाएंकलम आई
उसी ने सच को
आग लगाई"
khoobsoorat...soch....khoobsooratbayaan
"हाथ जिसके
जवाब देंहटाएंकलम आई
उसी ने सच को
आग लगाई"
Waaaaahhhhh khoobsoorat khayal khoobsoorat bayaan
"हाथ जिसके
जवाब देंहटाएंकलम आई
उसी ने सच को
आग लगाई"
khoobsoorat...soch....khoobsooratbayaan
बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...
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