मोड़ आता है मुश्किलों का सिखाने के लिये
दौर ये होता है हिम्मत को बढ़ाने के लिये ...
घर की दीवार तोड़ोगे तो भीड़ लग जायेगी
ना आयेगा कोई इक भी ईंट लगाने के लिये
जाँ ये छोटी है दोस्ती ईमान ओ वफ़ा से
फलसफा याद ये रखना सर उठाने के लिये ...
भूख थोड़ी तुम बचा कर ज़रूर ही रखना
हाथ से माँ के इक निवाला खाने के लिये....
धुआँ कर डालेगी आब-ए जिस्म ये शराब
लब-ए साकी है ज़रुरी जाँ बचाने के लिये ...
जब वो दिन आये तुझे पँख लगा दे मौला
ना काटना कोई शज़र ऊँची उड़ानों के लिये ...
खिड़कियाँ खुली हों और हवाओं से हो यारी
राज़ को पर्दों में रखना ‘भरत’ छुपाने के लिये
घर की दीवार तोड़ोगे तो भीड़ लग जाएगी
जवाब देंहटाएंना आयेगा कोई इक भी ईंट लगाने के लिये ।
Excellent !! बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंकरता तोह मैं भी आया गुस्ताखियाँ ,
सोचा किये था मुड़ जाऊँगा अगले ही मोड़ पे। … ~ प्रदीप यादव ~