7/1/13

फ़िर करी गंगा मैली


गंगा ने हो निर्मल
अभी बहना शरू करा था
अभी निर्मल हुई भर थी
अस्थियों से दामिनी की
हो पवित्र 
मिलती नहीं वो राख सदियों
जो कर सके यों निर्मल 

अभी बहना शरू करा भर था
आये नहाने 
अपने किये करे की 
बोलती राख से सने 
बकरी सा मैं-मैं करते 
लेडियाँ हाथ में लिये
मैं मैं

इतना अहम 
इतनी अहम 
सह ना सकी
बह ना सकी 
साफ़ और रह ना सकी
दामिनी तो स्वच्छ थी
दामिनी तो स्वच्छ है
स्वच्छता की देवी वो
चल पड़ी आगे वहाँ को
न पहुँचे जहाँ वो - जो हर जगह पहुँचे 

वसुंधरा की सीध में आकाश गंगा थी
प्रलय से बचाने को जिसने लड़ा
ना देखें हम जो - 
दिखा कर हमें
खुश थी शिव की जटा की राख को पा कर

बकरियों के झुंड पहले
छुप के आये 
बाँए से आये
दाएँ से आये 

वो भी आये जो कभी ना आये 
बहती गंगा में खूब नहाये 
वर्षों वर्ष की मैल 
दाएँ-बाएं छुपाये

क्यों ना हो फ़िर गंगा मैली
फ़िर करी गंगा मैली

'शजर' ७.१.१३ - ०४:१८

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