26/2/11
Live : Jagjit singh , Gulzar saab and Pt Birjoo Maharaj
The feeling is overwhelming.
Regards Bharat Tiwari | Sent on my BlackBerry® from Vodafone
23/2/11
भारी पत्थर...
Main aaya hi kab tha ki kahin jaoonga / मैं आया ही कब था की कहीं जाऊँगा
मैं एक साया ही था अभी ढल जाऊँगा...
तेरा साया था साया ही नज़र आऊंगा ..
बस वक्त की धार में खुद को बहा डालूँगा ...
अब मंज़िल का पता कहाँ से लाऊंगा ...
22/2/11
मुझ से कहती हैं खामोश निगाहें तेरी
21/2/11
insaaniya ki khoj / इंसानियत की ख़ोज
बदले वक्त में सच्चा था जो..
एक मासूम बच्चा था वो
वो इब्तिदा से अबरार था
माँ बाप से उसे प्यार था
बहन के दिल का ताज़ था
बच्चों से बेहद दुलार था
भाइयों का हमराज़ था
दोस्तों की आवाज़ था
हम-जवारों को उस पे नाज़ था *हम-जवार = neighbourhood
हम-पलों का कार-परदाज़ था *हम-पलों = colleague *कार-परदाज़, accomplisher of a work
वक्त की करवट...
उसे ख्वाबों ने घेरा इस कदर
भटकता है वो दर ब दर...
ख्वाबों को वक्त की क्या कदर
फिरा रहे हैं उसे शाम-ओ-सहर...
जरूरत-ऐ-वक्त से परेशान होना लाज़िम लगे
कशिश-ऐ-वक्त से बदलना लाज़िम लगे
अहससा-ऐ-तगाफ़ुल-ऐ-वक्त से दबना भी लाज़िम लगे * तगाफ़ुल = negligence
रह गया बस कर हवाले खुद को वो वक्त के अब
वक्त का उस से खेलना भी लाज़िम लगे
ख्वाहिशें भी कब कहाँ आखरी होती हैं
एक से शुरू हुई तो सितारों तक होती हैं
दिमाग का खेल दिल से खेलती हैं
गुल-ऐ-आरमान-ऐ-दिल चुपके से तोड़ती हैं
थकना लाज़िम है
बेचारगी भी लाज़िम है
कहाँ की राते कहाँ की नींदें
मशीनों को भला कहाँ नसीब नींदें
तुम दोस्त हो उसके
तुम उसको बचा लो
तुम उसका होश उसको
कुछ वापस दिला दो
इस अंधे कुँए की रौशनी में
डूब ना जाना
बस इतनी सी है बात
बस इतना सा फ़साना...
शिकार वक्त का ‘भरत’ भी हो गया था
मिला यार वक्त पर तो बच गया था
Badle Waqt Men Bhi Sachcha Tha Jo..
Ek Masoom Bachcha Tha Wo
Wo Ibtida Se Abarar Tha
Maan Baap Se Use Pyar Tha
Bahan Ke Dil Ka Taj Tha
Bachchon Se Behad Dular Tha
Bhaiyon Ka Hamraaz Tha
Doston Ki Aawaaz Tha
Ham-Javaron Ko Uss Pe Naz Tha *Ham-Javar = Neighbourhood
Ham-Palon Ka Kar-Paradaaz Tha *Ham-Palon = Colleague *Kar-Paradaaz, Accomplisher Of Work
Waqt Ki Karawat...
Use Khwaabon Ne Ghera Is Kadar
Bhatakta Hai Wo Dar B Dar...
Khwaabon Ko Waqt Ki Kya Qadar
Fira Rahe Hain Use Shaam-O-Sahar...
Zaroorat-E-Waqt Se Pareshaan Hona Lazim Lage
Kashish-E-Waqt Se Badalna Lazim Lage
Ahasasa-E-Tagafaul-E-Waqt Se Dabna Bhi Lazim Lage * Tagafaul = Negligence
Rah Gaya Bas Kar Hawaale Khud Ko Wo Waqt Ke Ab
Waqt Ka Us Se Khelna Bhi Lazim Lage
Khwahishen Bhi Kab Kahan Aakhari Hoti Hain
Ek Se Shuru Hui To Sitaaron Tak Hoti Hain
Dimaag Ka Khel Dil Se Khelti Hain
Gul-E-Aramaan-E-Dil Chupke Se Todati Hain
Thakna Lazim Hai
Bechaaragi Bhi Lazim Hai
Kahan Ki Rate Kahan Ki Neenden
Maseeno Ko Bhala Kahan Naseeb Neenden
Tum Dost Ho Usske
Tum Ussko Bacha Lo
Tum Usska Hosh Ussko
Kuch Wapas Dila Do
Iss Andhe Kunwen Ki Roushni Men
Doob Na Jana
Bas Itni Si Hai Baat
Bas Itana Sa Fasana...
Shikar Waqt Ka ‘Bharat’ Bhi Ho Gaya Tha
Mila Yar Waqt Par To Bach Gaya Tha
17/2/11
Bandagi / बन्दगी
wo shakhsh ab dua nahin karta
uski har umeed pe na-ummedi ka saya hai...
kuch yaaden hai usne samet ke samhal rakhhi
un yaadon ko seene se laga wo saansen laya hai...
badi himmat hai uff bhi nahin karta
kisi mitti ne khoob man se usse banaya hai...
wo maula se milne roz jaata hai
buton ko bhi dil me usne sajaaya hai...
kuch bhi ho jaaye
uski fitrat dostaana hi rahi
usne geet dushman ko bhi ‘Bharat’ pyar hi ka sunaaya hai...
वो शख्स अब दुआ नहीं करता
उसकी उमीदों पे नाउमीदी का साया है...
कुछ यादें हैं उसने समेट के सम्हाल रखी
उन यादों को सीने से लगा वो साँसे लाया है...
बड़ी हिम्मत है उफ्फ़ भी नहीं करता
किसी मिट्टी ने खूब मन से उसे बनाया है …
वो मौला से मिलने रोज़ जाता है
बुतों को भी दिल में उसने सजाया है …
कुछ भी हो जाये
उसकी फ़ितरत दोस्ताना ही रही
उसने गीत दुश्मन को भी ‘भरत' प्यार ही का सुनाया है …
भरत
१७/०२/२०११
नयी दिल्ली
10/2/11
Purana ? पुराना ?

पुरानी डायरी के
जाने क्या है
शाम ठहरी है तब से
पीले पन्नों की सफ़ेद चादर
उसकी चाँदनी बरक़रार दिखी...
रजनीगन्धा के फूल
अब भी नम हैं
रुमाल का कोना
अभी तक गीला है
डायरी पुरानी नहीं होती
... भरत ७/२/२०११ २३:५२
-=Purana ? =-
aaj shaam kuch panne palate the
purani diary ke
jaane kya hai
shaam thahari hai tab se
peele pannon ki safed chaadar
uski chaandani barkaraar dikhi...
rajanigandha ke phool
ab bhi nam hain
rumaal ka kona
abhi tak geela hai
diary purani nahin hoti
... bharat 7/2/2011 23:52
Tumne Bhari Muskaan Jin Hawaon Mein
Koshish
Mujh Se Kah’ti Hain Khamosh Nigaahen Teri
Mujh Se Kah’ti Hain Khamosh Nigaahen Teri
Aa Mujh Me Utar Tujh’ko Main Ishq Sikha Doon
Meri Baahon Ke Daay’re Me Sama To Sahi
Aa Tujhe Main Ah’saas-E-Muhabbat Dikha Doon
Hazaron Khwab Hain Rakhe Maine Sambhaal Ke
Aa Tujhe Tere Khwaabon Se Mila Doon
Utra Tere Seene Ka Dard Mere Seene Men
Aa Tujhe Gale Laga Ye Dard Mita Doon
Mushkilen Door Kar Main Doon ‘Bharat’ Saari
Aa Khoyi Muskaan Wapas Main Dila Doon....
8/2/11
शमशाद इलाही अंसारी की दो उम्दा रचनाएँ....
![]() |
शमशाद इलाही अंसारी |
शम्स भाई एक मजबूत विचारधारा पे अडिग एक अडिग व्यक्तित्व के मालिक हैं
उम्मीद है आप को पसन्द आएँगी
ग़ज़ल
भरी दोपहर में वो कोई ख़्वाब देखता था
क़ाग़ज के पर देकर मेरी परवाज़ देखता था.
दबा कर चंद तितलियाँ मेरे तकिये के नीचे
मौहब्ब्त के नये आदबो-अख़्लाक देखता था.
कभी दस्त चूमता था, कभी पेशानी मेरी
सजा सजा के मुझे मेरे नये अंदाज़ देखता था.
हर सुबह बाँधता था जुगनुओं के पाँव में घुँघरु
फ़िर उनका रक़्स वो सरे बाज़ार देखता था.
जब से होने लगी है मेहराब मेरे घर की ऊँची
अजीब खौफ़ से मेरा अहबाब मुझे देखता था.
वो मौज़िज़ भी था मौतबर, और मुहाफ़िज भी
भंवर में पड़ी कौम को वो बस दूर से देखता था.
मश्विरा है "शम्स" कि ख़्वाब अपना न बताये कोई
वो बेवज़ह लुट ही गया हाकिम खामोश देखता था.
ΞΞΞΞΞΞΞΞΞ※※※※※※※ΞΞΞΞΞΞΞΞΞΞΞ
रचनाकाल: अगस्त १४,२०१०
ये कविता एक हास्यास्पद वीडियो देखकर लिखी गयी थी जहाँ रोने रुलाने का सालाना प्रायोजित कार्यक्रम चलता है, ज़रा निरपेक्ष भाव की आवश्यकता होगी इसे समझने के लिये, एक झटके के बाद जो दो लम्हों के ठहराव के क्षण होते हैं, पाठक अगर ऐसा महसूस किये तो मैं समझूँगा कि मैं अपने कबीराई अंदाज़ में सफ़ल हूँ, अन्यथा फ़िर किसी और तरीके से अस्त्र उठाऊँगा..इस विद्रूपता के समक्ष हार तो न मानूँगा जिसे एक अजीब से धर्म का जामा पहनाने की जूगत की जा रही है.... शम्स
मुल्ला
मुल्ला चढ़ा मचान पे देवे सबको रुलाये !
कोई पीटे छाती अपनी कोई नीर बहाये !!
कोई रोवे जोर से कोई अपना खून बहाये !
गुपचुप बैठा मुल्ला देखे जनता रोल मचाये !!
अली को मारा दुश्मन ने हुये हजारों साल !
मुल्ला की देखो शैतानी मारे उसे हर साल !!
मारे उसे हर साल चला रखा है गोरख धंदा !
दसवां-चालीसवां का टोटका न होने दे मन्दा धंदा!!
या अली कर मदद मरवावे बार बार ये नारा !
कर लेता वो खुद मदद आपणी काहे जाता मारा !!
किस्से गढ़ गढ़ के सुनावे था उसका घोड़ा न्यारा !
मितरो और कुनबे में से था नबी का सबसे प्यारा !!
था अगर जो प्यारा फ़िर क्यों लगा था लडने !
सत्ता के संघर्ष में क्यों वो जाने लगा था मरने !!
सफ़विद की थी मजबूरी मुल्ला को दिया था काम !
किस्से पढ़ पढ़ कर वो सुनावे पावे राजा से इनाम !!
जीवित का न कभी मान करे मरे को पूजे जीभर !
गंदा रहे साल भर मुहर्रम में खुश्बु से रहे तरबतर !!
ΞΞΞΞΞΞΞΞΞ※※※※※※※ΞΞΞΞΞΞΞΞΞΞΞ
रचनाकाल: दिसंबर २३,२०१०
सादर
भरत तिवारी
6/2/11
इस तरह तू क्यों मुस्कुराता है
3/2/11
Khayal
Khabar hi na hui...
Jam gaya Khoon tham gayi saansen
Khabar hi na hui...
Soncha tha ek baar Milunga
rukhsati ki khatir...
Kab rab ne 'bharat'
kab Ruuh farishton Se mili
Khabar hi na hui...
दोस्ती कब दर्द कब जाँ पे बनी
खबर ही ना हुई
जम गया खून थम गयी साँसें
खबर ही ना हुई
सोंचा था एक बार मिलूँगा
रुखसती की खातिर
कब रब ने सुनी 'भरत'
कब रूह फरिस्तों से मिली
खबर ही ना हुई
2/2/11
Khayal
Hamsafar tere hain sukhe patte hi ye ab
Regards Bharat Tiwari | Sent on my BlackBerry® from Vodafone