5/8/13

आप के घर का पता रखता हूँ अब #Ghazal #BharatTiwari

आप के  घर  का  पता रखता हूँ अब
बस के इतनी  ही खता करता हूँ अब

बंद गलियाँ बन  गयी  हैं  घर  मिरा
रात का  साया  बना  फिरता  हूँ अब

वो  परिंदा  मर  गया  उड़ता  था  जो
पर  ये  मुर्दा  हैं के  जो  रखता हूँ अब

आप  के  आने  कि  जो  उम्मीद  है
साथ  उसके  टूट  कर  मरता हूँ अब

एक   मूरत  है   औ  इक  तस्वीर  है
बस  उन्ही  से  बात  मैं करता हूँ अब

इश्क  की   पाकीज़गी   जाने  'भरत'
इश्क  से ही  बस  के वाबस्ता हूँ अब

2 टिप्‍पणियां:




  1. बहुत अच्छी रचना है
    आदरणीय भाई भरत जी !

    तीसरी पंक्ति में शायद बंद गलियां लिखना था...
    देखलें
    :)

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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