आप के घर का पता रखता हूँ अब
बस के इतनी ही खता करता हूँ अब
बंद गलियाँ बन गयी हैं घर मिरा
रात का साया बना फिरता हूँ अब
वो परिंदा मर गया उड़ता था जो
पर ये मुर्दा हैं के जो रखता हूँ अब
आप के आने कि जो उम्मीद है
साथ उसके टूट कर मरता हूँ अब
एक मूरत है औ इक तस्वीर है
बस उन्ही से बात मैं करता हूँ अब
इश्क की पाकीज़गी जाने 'भरत'
इश्क से ही बस के वाबस्ता हूँ अब
बस के इतनी ही खता करता हूँ अब
बंद गलियाँ बन गयी हैं घर मिरा
रात का साया बना फिरता हूँ अब
वो परिंदा मर गया उड़ता था जो
पर ये मुर्दा हैं के जो रखता हूँ अब
आप के आने कि जो उम्मीद है
साथ उसके टूट कर मरता हूँ अब
एक मूरत है औ इक तस्वीर है
बस उन्ही से बात मैं करता हूँ अब
इश्क की पाकीज़गी जाने 'भरत'
इश्क से ही बस के वाबस्ता हूँ अब
खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है
आदरणीय भाई भरत जी !
तीसरी पंक्ति में शायद बंद गलियां लिखना था...
देखलें
:)
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार