9/11/11

पेरिस के बहुत ही अपने “म्युज़े रदां” से

कहाँ से
चुनकर लाऊं
शब्द फूलों से ...
जोड़ूँ
और मिला के
बना माला
दे दूँ
तुमको.......





कि
समझ जाओ तुम
कितना बेचैन हूँ
तुम्हारे लिए........ !

पिछली दफ़ा
माला ना बनी थी सुन्दर
कर ना पायी
बयान !

कमज़ोर शब्द...
कह ना सके तुमसे
भावना मेरी
आये वापस लेकर तुमसे
जवाब एक सवाल एक
“क्यों !! ? “
... थी माला कमज़ोर
या देखा ही नहीं तुमने...........

शब्दों में ताकत होती है
सोचा ना था
...
नहीं हैं
आड़ी-तिरछी
गोल-मटोल
सुंदर ज्यामितीय आकृतियां
उनमे “सब में” होता है
“वो सब” मेरा
है जो सिर्फ तुम्हारा
...
नहीं देखते तुम
तुम्हारी बदली प्राथमिकतायें
...
नहीं बदली, ना बदलेंगी
मेरी ये इच्छायें...
यहीं की यहीं, वहीँ की वहीँ
रहेंगी
चिरकाल तक
मेरी ये इच्छायें...

धरातल से लिख !
कर ओस से तर
आकाश को सौंप
कवि हुआ -
जीवित “स्टैचू ऑफ थिंकर”
अपनी ही पेरिस के बहुत ही अपने “म्युज़े रदां” में

भरत तिवारी, ६:५५, ९-११-२०११
नई दिल्ली
© भरत तिवारी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

2 टिप्‍पणियां:

  1. स्टेचू ऑफ थिंकर.....और..साथ ही....गज़ब की कल्पनाशीलता....आपकी....अति सुंदर।

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