1/10/11

कृत्या अक्टूबर २०११ | Kritya October 2011

सादर समर्पित सब दोस्तों को !!!! हमेशा आपका भरत 

kritya-2011-10-october

1. अग्फा और कैनन और मैं

तस्वीर उतारता रहा
अपने कैमरे को मैंने अपना बचपन पहना दिया
और बोला कि
तुम ! जो बड़ी बड़ी तस्वीरें खींचते हो
आज वो खींचो
जो मैंने
'अग्फा' से उतारी थी//
वो अपनी आँखों को मेरी आँखों का सहारा ले
कोशिश करता रहा
थक गया //
मैंने मजाक किया उससे
"भाई तुम तो बड़े टाइप के हो, मेरा 'अग्फा' वो नहीं थकता था छोटा था फिर भी ....
... तुम्हे तो रीलें भी पैदाइशी मिली है
जैसे चांदी का चम्मच ले पैदा हुए हो "
उसकी थकान बस एक बैट्री भर से मिट गयी
और बिना कुछ जवाब दिये
वापस शुरू हो गया वो , क्लीक क्लीक ! //
रात को मैंने दुबारा जब कहा "तुमसे नही होगा !"
वापस बिफर उठा मुझ पर ही
"गया वक्त वापस नहीं आता
गए वक्त की तस्वीरें नही उतरती "
बोला !
"तुम खुश किस्मत हो
तुम्हारे ज़हन में तो है
उसको ही सम्हाल लो
अब वो तस्वीरें ज़हन से बाहर 'कभी' नही आएँगी
'अग्फा' हो या 'कैनन'
तुम्हारे साथ वो भी बड़े हो गए हैं"///
मैं चुपचाप बच्चों की तस्वीरें उतारने लगा
उसने बचपन का जामा उतार के
गेस की जींस वापस पहन ली थी

2.
वक्त के उस 'एक' सिरे की तलाश है /
जिसके अँधेरे की रोशनी से मेरे चिराग अब भी रौशन हैं //
जो धडकनों को काबलियत दे रहा है /
सालार बन के लगाम थाम //
डोर थामी है गुड्डे की /
फूँक रहा है जज़्बा-ए रवां, जाविदाँ/
तमाम पीरों की दुआ /
दुआ का असर/
असर के असर से दौड़ती सारी उम्मीदें /
उम्मीदों का खैरख्वाह /
सब 'उसी' सिरे के जानिब हैं//
सफ़र था लंबा/
अब कट गया/
अब आने को है 'वो' हाथ मेरे//

*सालार leader
*जाविदाँ everlasting

3.
एक मीठी मुस्कान ले आना 
जब आना तुम......
जीने के अरमान ले आना
जब आना तुम......
धूल सनी डायरी तुम्हे ही सोंचती होगी
कुछ गीत ग़ज़ल कुछ शेर नज़्म ले आना
जब आना तुम......
करके बसेरा है पसरा गहरा ठंडा सन्नाटा
बेपरवाह हँसी, लबों की गर्माहट ले आना
जब आना तुम......
मंदिर मस्जिद गिरजों मे तो मिले नहीं
ढूँढ के जो मिल जायें भगवान ले आना
जब आना तुम......
साथ नहीं है देता वक्त और वक्त के लोग
बढ़ती सी इस उम्र का चैन आराम ले आना
जब आना तुम......

है हमसे मजबूत हमारे रिश्ते की बुनियाद
इस दुनिया की खातिर कोई नाम ले आना
जब आना तुम......
समय रुका है जहाँ छोड़ के गये थे तुम
गये वक्त मे देना था जो प्यार ले आना
जब आना तुम......
साँसें घुटती हैं अब ईंट की छत के नीचे
छोटा सा आँगन और पेड़ की छाँव ले आना
जब आना तुम......
एक ज़माना गुज़रा सुने हुए दिल को
'भरत' की गुम धड़कन को भी ले आना
जब आना तुम......

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